लेखक की कलम से

चलो पतंग उड़ाएं…

धूप सुनहरी है अब छायी
चले भास्कर अब उत्तरायन
शीत ताप में नरमी आयी ।

गजक रेवड़ी माँ है लायी
सुगंध तिल लड्डू की भायी
दही अचार पापड़ संग में
चटनी खिचड़ी सबने खायी ।

राजू रामू घर से निकले
मैदानों में रौनक धायी
रंग बिरंगा हुआ गगन है
छिड़ी हवा में पेंच लड़ायी ।

किसी ने लूटी कटी कटायी
वो काटा की धुन बजायी
कोई मित्र न कोई शत्रु है
सबको तो बस पतंग लुभायी ।

©डॉ. रीता सिंह, आया नगर, नई दिल्ली, अस्सिटेंड प्रोफेसर चंदौसी यूपी

 

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