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गांव में दूध 25 रुपए, शहर में आते ही वहीं दूध 50 रुपए लीटर के भाव बिक रहा …

बिलासपुर । छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासनुर में बिचौलियों के कारण गांव का दूध शहर में ज्यादा कीमत पर बिक रहा है और दूध पीने वालों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। असंगठित व छोटे-छोटे किसान अपना दूध गांव के ही किसी ऐसे व्यक्ति को दे देते हैं जो अपना दूध लेकर शहर जाता है। नतीजा ये कि वह जो कीमत तय करता है, वही कीमत उसे मिलती है। यानी उसने प्रति लीटर 25 रुपए तय किया तो किसान को उतना ही मिलेगा।

किसान भी जानते हैं कि उसका दूध शहर में दोगुनी कीमत पर बिकता है। हद तो ये हैं कि जिन गांवों में देवभोग ने समितियां बनाई थी, उसमें से कई बंद हो चुकी है और अब वहां दूध पर बिचौलिए राज कर रहे हैं। इधर जो अपना डेयरी या दूध कंपनियों के काउंटर में दे रहे हैं, उन्हें भी कम रेट मिलता है। इसमें सबसे बड़ी समस्या ये है कि दूध को ज्यादा समय तक नहीं रख सकते नहीं तो वह खराब हो जाता है। इसी बात का फायदा सभी उठा रहे हैं।

जो दूध गांव में 25 रुपए लीटर में मिल रहा है, वही दूध शहर आकर 50 रुपए का हो जा रहा है। इतना मुनाफा तो किसी भी चीज में नहीं है। पर यह मुनाफा बिचौलियों व दूध विक्रेताओं की जेब में जा रहा है। किसानों को उनकी मेहनत की कमाई नहीं मिल पा रही है। किसानों से औने-पौने कीमत पर दूध खरीदकर इसे व्यवसाय बना चुके लोग इस धंधे को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि यह खर्च काटकर 40 प्रतिशत मार्जिन का धंधा है।

तखतपुर ब्लॉक ग्राम नगोई में दाउराम यादव के पास 40 मवेशी हैं। वे अपने घर के 50 लीटर दूध के साथ ही गांव में 150 लीटर और दूध कलेक्शन करते हैं। उनके मुताबिक गाय का दूध 25 रुपए तो भैंस का दूध 30 रुपए लीटर में खरीदते हैं। बेटे बृजेश और राजेश रोजाना बाइक में बिलासपुर जाकर रोज 200 लीटर दूध लोगों के घरों में देते हैं। स्थानीय भाषा में इसे चंडी देना कहते हैं। बिलासपुर से नगोई की दूरी 30 किमी है। आना-जाना और चंडी देने को मिलाकर 90 किमी दोनों बाइक चलने पर यदि चार लीटर पेट्रोल(406रु.) लगता है तब भी इन्हें रोजाना करीब 4100 रुपए का मुनाफा हो रहा है। माह के 30 दिनों में यह मुनाफा 1.21 लाख रुपए होता है। नगोई की तरह ही ढनढन के बहोरिक यादव, कुंआ के संतोष कौशिक, लिदरी के दिलहरण यादव सहित कई गांवों के लोग दूध शहर लेकर आ रहे हैं और भारी मुनाफा कमा रहे हैं।

शहर की डेयरी शॉप में बड़ी मात्रा में दूध ग्रामीण इलाकों से बिचौलिए लेकर आते हैं। वे 50 से 60 किमी दूर से गांवों से दूध कलेक्शन कर वाहन से लाते हैं। लोरमी इलाके से एक बिचौलिया रोज 3500 लीटर तो मुंगेली, तखतपुर की ओर से एक बिचौलिया रोज 1500 लीटर दूध बिलासपुर की डेयरी दुकानों में लाता है। ऐसे ही कई लोग हैं जो ऐसा कर रहे हैं। किसानों से 25 रुपए में दूध लेकर 40 रुपए में बेचते हैं। ये दूध से लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।

देवभोग के दुग्ध संयंत्र में जिन किसानों का दूध आता है, उन्हें न्यूनतम 34 रुपए लीटर मिलता है। फैट के हिसाब से कीमत बढ़ती है। पर दिक्कत ये है कि यहां 5 हजार लीटर दूध का ही कलेक्शन है। इसमें भी बिलासपुर के साथ ही मुंगेली जिले के किसान भी शामिल है। देवभोग ने दूध कलेक्शन के लिए समितियां बनाई है लेकिन कई कोरोना काल में बंद हो गई। देवभोग का दूध 26 रुपए में आधा लीटर मिलता है। इस तरह 52 रुपए लीटर पड़ता है। यह खुले दूध की तुलना में दो रुपए महंगा है। देवभोग के अधिकारी जिले की 17 समितियों में 400 किसानों के रजिस्टर्ड होने की बात कह रहे हैं।

बिल्हा, गतौरा, अकलतरा सहित ट्रेन रूट के पास के कई गांवों से रोजाना सैकड़ों लीटर दूध शहर पहुंचता है। इन्हें लेकर आने वाले भी ज्यादातर छोटे बिचौलया हैं। ये अपने गांव में दूध 22 से 25 रुपए लीटर में खरीदते हैं और उसे डेयरी में लाकर 40 रुपए में बेचते हैं। तत्काल वहीं दूध डेयरी के काउंटर में 50 रुपए लीटर में बिकता है। यानी दूध को गांव से ट्रेन में शहर लाने वाले बिचौलिया को प्रति लीटर 13 से 15 रुपए तो डेयरी शॉप वाले को बैठे-बैठे ही 10 रुपए प्रति लीटर मुनाफा हो रहा है लेकिन दूध का उत्पादन करने वाले किसान को दूध का 22 या 25 रुपए ही मिल रहा है। जबकि गाय को चारा खिलाने से लेकर उसकी सेवा उसको ही करना है।

गोकुल धाम में 55 सहित जिले में छोटी-बड़ी 960 डेयरियां है। दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष मुकेश मिश्रा के मुताबिक गोकुल धाम की डेयरी से रोजाना 6 से 7 हजार लीटर दूध डेयरी शॉप में पहुंचता है। उन्हें अप्रैल 2022 से 38 से 40 रुपए लीटर रेट मिल रहा है लेकिन दूध उत्पादन की लागत इतनी अधिक है कि वे प्रति लीटर तीन-चार रुपए से ज्यादा नहीं बचा पाते। उसकी वजह ये है कि चारे की कीमत पिछले कुछ समय में ही तीन गुना तक बढ़ गई हैं। डेयरियां बंद हो रही है क्योंकि दुग्ध उत्पादकों को घाटा हो रहा है। अप्रैल के पहले उन्हें दूध के प्रति लीटर 35-36 रुपए ही मिलते थे।

एकीकृत न्यादर्श सर्वेक्षण के मुताबिक जिले में रोजाना 2 लाख 22 हजार लीटर से ज्यादा दूध का उत्पादन रोज हो रहा है। पर जिले की जनसंख्या 21 लाख के करीब है। इस तरह प्रति व्यक्ति 100 ग्राम दूध का उत्पादन भी जिले में नहीं हो रहा है। हालांकि दूसरे स्रोतों से मार्केट में करीब 80 हजार लीटर दूध और पहुंचता है लेकिन इनमें से ज्यादातर दूध बाहर से आता है। इसे भी जोड़ दें तब भी दूध का उत्पादन प्रति व्यक्ति 140 ग्राम के करीब ही हो रहा है। ये आंकड़ा तो चौकाने वाला है ही पर इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि जब उतनी मात्रा में दूध ही नहीं है तो फिर मार्केट में पर्याप्त मात्रा में दूध कहां से आ रहा है? जाहिर है, दूसरे तरीके से दूध बनाया जा रहा है।

“बिचौलियों के कारण किसानों को दूध का बहुत कम रेट मिल रहा है। हम कम से कम 34 रुपए लीटर तो देते ही हैं। हम ऐसे गांवों का सर्वे कर रहे हैं और वहां समिति खोलने जा रहे हैं। यदि किसान चाहें तो हम वहां दूध के उत्पादन को देखते हुए समिति खोलने तैयार हैं।”

-एम.द्विवेदी, डीडीए, देवभोग, बिलासपुर

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