मध्य प्रदेश

लोकसभा चुनाव: मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में 86 लाख वोटों का अंतर, अब कांग्रेस को भी सता रही चिंता

भोपाल
कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और दिग्विजय सिंह से नेतृत्व छीनकर भले ही युवा नेताओं को कमान सौंप दी है लेकिन आने वाले लोकसभा चुनाव में मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहां 96 सीटों से घटकर 66 पर आ गई, वहीं पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखा जाए तो वह भाजपा से 23 प्रतिशत मतों से पीछे है। 2019 में कांग्रेस को भाजपा से 86 लाख वोट कम मिले थे। अंतर का यह आंकड़ा 2014 में 56 लाख और प्रतिशत में 19.13 था। अब कांग्रेस को भी चिंता सता रही है कि लोकसभा चुनाव तक मप्र का माहौल राममय होने के कारण वह वोटों के अंतर को कैसे पाटेगी। जाहिर है कि मप्र के विधानसभा चुनाव परिणामों को देखें तो कांग्रेस दस लोकसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाए हुए है लेकिन वह इसे लोकसभा चुनाव परिणामों में बरकरार रख पाएगी, यह कह पाना मुश्किल है।

कांग्रेस अस्तित्व बचाने के प्रयास में
पिछले महीने हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता खोने के बाद कांग्रेस ने अपनी डूबती नैया को संभालने के लिए युवा नेताओं को बागडोर सौंपी है। ओबीसी वर्ग के जीतू पटवारी को कमल नाथ के स्थान पर मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं, आदिवासी नेता उमंग सिंघार को मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। कांग्रेस इन युवा नेताओं के सहारे लोकसभा चुनाव में अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास कर रही है। मप्र में कुल 29 लोकसभा सीट हैं। वर्ष 2019 में भाजपा को 28 और कांग्रेस को मात्र एक सीट पर जीत मिली थी। इससे पहले के चुनाव में कांग्रेस को दो और भाजपा को 27 सीट मिली थी, तब कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमल नाथ चुनाव जीते थे। यानी स्पष्ट है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपना गढ़ छिंदवाड़ा बचाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा। भाजपा भी इस प्रयास में है कि वह मप्र को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मुक्त बना दे।

पिछले पांच चुनाव से लगातार बढ़ रहा भाजपा का जनाधार
आमतौर पर लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों और प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही होते हैं। मप्र में भी भाजपा मोदी तो कांग्रेस गांधी परिवार के चेहरे पर चुनाव लड़ती है। पिछले पांच चुनाव का रिकार्ड देखा जाए तो सीटें भाजपा के पास ही ज्यादा रहती हैं। इसी तरह भाजपा का जनाधार यानी मत प्रतिशत 43.45 से बढ़कर 58.00 प्रतिशत पहुंच गया। वहीं, कांग्रेस का जनाधार अधिकतम 43.91 से घटकर वर्ष 2019 में 34.50 पहुंच गया।

विपक्षी एकता भी करिश्मा नहीं दिखा पाएगी
कांग्रेस भले ही भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों का गठबंधन आइएनडीआइए बनवा ले लेकिन मप्र में वह कोई करिश्मा नहीं दिखा पाएगी। कांग्रेस को छोड़ गठबंधन के किसी दल का मप्र में कोई वजूद नहीं है।

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