लेखक की कलम से

संवाद …

 

आँखो से दिल का

 

दिल…आँखो में इतनी उदासी क्यों?

 

” नम आँखो की उदासी देख दिल पूछ बैठा..”

!

जवाब का प्रतिउत्तर नही मिला था…!फिऱ भी दिल कहता है

तुम्हारी  आँखो  के हर  भाव से जीवंतता बनी रहती है मुझमें सुनो हो सके तो  इसे जीवंत रखो…,??

रुहदारियाँ यही है हम दोनों  के बीच,.!तुम हसोगी नहीं तो मेरा धड़कना बंद हो जाएगा..!!

फासले है मिल नही पाएँगे विडंबना देखो न बसते हम एक शरीर   मे ही..हैं न…!

एक दूसरे को देखने के लिए आईने की ज़रुरत पड़ती है, तुम देख लेती हो मुझें, औऱ तुम्हे देख मैं धड़कता हूँ..!सुनो न..तुम मुस्कुराना  ज़ारी रखो औऱ तुम्हारी मुस्कान सँग  मैं ज़ारी  रखूं धड़कना..!!

सौदा पक्का??दिल अशांत हैं नम आँखे अब भी ख़ामोश

कैनवास पर बिखरे रँग अपनी अपनी कहानियों में  व्यस्त,आँखो के अपने पनीले खारे रँग

औऱ दिल के अपने तैलीय रँग..बेमेल से दोनो..!सुकूँ की एक ज़ीस्त  के साथ  एक ज़िस्म में शामिल…!! ??

स्वार्थी हम दोनों,#स्वार्थ  ईत्तु सा एक दूसरे को जीवंत देखने का बस…!!

आँखे.. इश्क़ हुआ न

दिल..नही

आँखे.. फ़िर…?

दिल..मैं खुदगर्ज नही

आँखे…?मतलब

दिल …मैं धड़कना बंद करदूँ तब सब रुक जाएगा

आँखे.. हम्ममम्म

दिल .चाहता हूँ जब तक हूँ तुम  मुस्कुराती रहो?

तुम्हारा मुस्कुराना मुझें जिंदगी देता है समझी…!!

आँखे पुनः नम हुई…!!

 

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ                                              

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