लेखक की कलम से

घर पे रहें सुरक्षित रहें …

सोच रहा हूँ एक कहानी लिखूँ कोरोना पे,

समझ न आए आँखों से क्यों आँसू बहते हैं, कुछ ने गलतियाँ की कह गए अलविदा दुनियाँ को, घर पे रहिए रहें सुरक्षित हम यह सबसे कहते हैं।

छाया विश्व पे संकट भारी त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, कौन बचाए इस विपदा से मिलता नहीं कोई छोर है, दूरी अगर बनाएँ सामाजिक बड़ों की आज्ञा में रहते हैं, घर पे रहिए रहें सुरक्षित हम यह सबसे कहते हैं…

 बंद स्कूल हैं कॉलेज भी बंद, बंद हुए व्यवसाय हैं, सच कहते हैं दुनियाँ वाले बीते दिन कब आए हैं, नयी उम्मीदों के संग फिर भी आशा के दीपक जलते हैं, घर पे रहिए रहें सुरक्षित हम यह सबसे कहते हैं …

कुछ दिन पहले याद है बेरहमी से हाथ जो काटा था, रक्षक पर जो पड़े थे पत्थर कानून पे पड़ा तमाचा था, संस्कृति यह नहीं भारत की हर-पल सोचते रहते हैं, घर पे रहिए रहें सुरक्षित हम यह सबसे कहते हैं …

अहम् नहीं कुछ भी मानव का समय आज बतलाता है, अच्छा हो या बुरा वक्त हो यूँ ही बीतता जाता है, लो प्रेरणा न हारो हिम्मत कष्ट तो वीर ही सहते हैं, घर पे रहिए रहें सुरक्षित हम यह सबसे कहते हैं।

©डॉ. दीपक, विभागाध्यक्ष हिंदी, एसजीजीएस कॉलेज, माहिलपुर पंजाब

Back to top button