मानव तुम कौन हो …
पृथ्वी दिवस पर छंद-मुक्त रचना के रूप में कुछ भाव –
मानव तुम कौन हो ?
क्या तुम मां के गर्भ में पले
उस भ्रूण का केवल
विकसित रूप हो जो
ईश्वर प्रदत्त एक निश्चित
आकृति ग्रहण किए है और
विकास के आधार पर
विभिन्न जीवन पद्धतियां
अपनाता जा रहा है ?
नहीं मानव,
तुम्हारी केवल यही परिभाषा
नहीं हो सकती,
तुम तो ईश्वर की वह
श्रेष्ठतम कृति हो जिसे
उसने विभिन्न वैचारिक,
बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं से
पुरस्कृत किया है,
जिससे तुम उसकी सृष्टि के
रक्षक बन सको।
हे मानव!
ये तुम पर ही निर्भर है कि
तुम इन क्षमताओं द्वारा
अपनी कर्म स्थली सृष्टि की
कैसे रक्षा करते हो?
ध्यान रखो मानव
वो सृष्टिकर्ता तुम्हारा परीक्षक भी है,
उसकी दृष्टि तुम्हारे हर कर्म पर है,
यदि तुमने अपनी क्षमताओं का
दुरुपयोग कर
सृष्टि के भक्षक का रूप ले लिया
तो वह तुमसे उनका
हनन भी कर सकता है,
अब निर्णय तुम्हारे हाथ में है मानव!
कि तुम स्वयं को किस रूप में
परिभाषित करवाना चाहते हो
रक्षक या भक्षक?
©डॉ. रीता सिंह, आया नगर, नई दिल्ली, अस्सिटेंड प्रोफेसर चंदौसी यूपी