लेखक की कलम से
ख़्वाबों की रानी हूं मैं ….
ख़्वाबों की रानी हूं मैं
ख़्यालों में डूबी रहती हूं मैं
ज़िन्दगी की छोटी सी बगिया में
एक ख़ूबसूरत फूल हूं मैं।
ख़ूबसूरत फूलों की मनमोहक ख़ुशबू हूं मैं
अपने चारों और महक फैलाती हूं मैं
फूलों पर लहराती हुई छोटी सी प्यारी सी तितली हूं मैं,
गुनगुनाती हुई, अपनी मस्ती में झूमती हुई
फूलों फूलों पर मंडराती हूं मैं।
नील गगन में उड़ते हुए चांद सितारों को छू जाती हूं मैं
अपार समुन्दर में तैरती तैरती विश्व की अन्तिम सीमा तक पहुंच जाती हूं मैं।
किसी प्रेमी की प्रिया हूं मैं,
किसी कवि की कल्पना हूं मैं
क्यूंकि की ख़्वाबों की रानी हूं मैं।
©मनीषा कर बागची