लेखक की कलम से

दुर्गा बनूंगी …

जिंदगी की लड़ाई में मैं

परेशान होकर टूटकर बिखर नहीं जाऊंगी ,

पथरीले पथपर चलते चलते डरकर मैं रुक नही जाऊंगी ,

क्योकि अब मैं दुर्गा बनूंगी ।

 

जिंदगी की सारी बाँधा विपत्तिओ को धकेल कर हर प्रतियोगिताओ में मैं विजयी बनूंगी,

क्योकि अब मैं दुर्गा बनूंगी ।

 

रावणो के घरों में जो सीताएँ बन्दी है , उनको मैं बन्धन मुक्त करके रहूंगी,

क्योकि अब मैं दुर्गा बनूंगी ।

 

दुर्योधनो के हाथो में जिन द्रौपदीओ का बस्त्र हरण हो रहा है हर रोज, प्रतिशोध लेने के लिए, उनको मैं जगाकर रहूंगी,

क्योकि अब मैं दुर्गा बनूंगी ।

 

आज से अन्याय के साथ समझौता करना छोड़ दूंगी,

जरूरत पडने पर संग्राम भी करूंगी ।

जो लोग आग में जल जल कर अब सिर्फ आग उगलते है मैं उनका ही साथ दूंगी ।

क्योकि अब मैं दुर्गा बनूंगी ।

 

सच कह रही हूँ मैं, अब मैं दुर्गा बन कर ही रहूंगी…!!

 

©मनीषा कर बागची                           

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