लेखक की कलम से

ईश्वर और उनकी पर्ची …

एक बार ईश्वर ने सब दुआएं इकठ्ठा कीं

उन्हें पारदर्शी कांच के जार में बंद करके हिलाया जोर से

फिर एक चिड़िया नियुक्त की गयी पहली, दूसरी और तीसरी पर्ची निकालने को

निष्पक्ष रहे इसलिए चिड़िया की आँखों पर काली पट्टी बांधी गयी

पहली पर्ची में पीड़ा थी जिसे ईश्वर ने स्वीकार किया

दूसरी में आंसू ईश्वर ने उसे भी स्वीकार किया

तीसरी पर्ची में मुस्कान थी ईश्वर ने उसे भी स्वीकार किया

इस तरह हम ईश्वर के वरदानों से सुसज्जित हो गए,

बाक़ी बची तमाम पर्चियों में से ही किसी एक पर लिखा होगा प्रेम

जो ईश्वर तक नहीं पहुंची

इसीलिए हम आज तक बड़ी शिद्दत से तलाशते हैं प्रेम

ईश्वर स्वतः संज्ञान नहीं लेता,

ईश्वर से सवाल हो सकते तो ये जरूर पूछा जाना चाहिए कि उसने बाकी बची पर्चियों का क्या किया

और क्या ईश्वर को पढ़ना नहीं आता ?

©अर्चना राज चौबे, नागपुर महाराष्ट्र       

Back to top button