दुर्गा पूजा…

मां कितनी माताओं को अपने में समाहित कर लिया इस वर्ष!

पर आप मां पुनः तुम आ गई,
पर इस वर्ष जी तोड रुला गई,
जब जब भजन गा रही,
समय असमय “मां” शब्द उच्चरित कर रही,
आंखें बोल उठ रही,
कलेजा फटने लग रहा,
रोम रोम कष्ट से विचलित हुआ जा रहा!
मां पुनः इस वर्ष आ गई,
जब जब आप की विनती कर रही,
आपका नाम शब्दबद्ध कर रही,
मैंने हर बार अपनी “मां” का सानिध्य पाया!
मां आपका मूर्त रूप ही तो थी,
जिसने मुझे जन्म दिया
धरा भूमि पर कर्म योद्धा बनाया,
जीवन के कंटकों को सहर्ष गले लगाना सिखाया,
आज मैं जो भी हूं
वह अपनी “मां”से ही तो हूं
वे तो “मां दुर्गा”आपका साक्षात रुप थी ना!
जिन्होंने नियति,कर्म,धर्म सब का मूर्त रूप दिखाया!
इस वर्ष की पूजा में अपार पीड़ा अनुभूत कर रही!
आप नख शिख शृंगार कर आई!
पर आप माँ पुनः आ गई,
जब जब आप को देख रही
तो आप के रुप में मेरी “मां”का अवलोकन कर रही
वे तो अब आप में समाहित हो गई हैं ना
“मां”
-अल्पना सिंह (कोलकाता), शिक्षिका,कवयित्री