सुरक्षा कवच…
अनगिनत दुआएँ
बेहिसाब मन्नतें
पीर पैगम्बरों की मज़ारों
पर धागे बांधे,
झाड़ फूँक, व्रत आडम्बर
स्नान विभूति,माथे टेके
108 की नाम माला
पूजा अर्चना
गले में तावीज़
बड़ों की आशीष
ना जाने क्या-क्या किया
कैसा-कैसा ज़हर पिया
तब कहीं जाकर
एक पुत्र ने जन्म लिया।
सोचती हूँ-
एक पुरुष के जन्म के लिए
इतना सब ज़रूरी क्यों????
बड़ा हुआ तो
सिन्दूर, बिंदी, मंगलसूत्र, लाल चूड़ियाँ
हरी-हरी मेंहदी,बिछुआ और
लाल चुनरी होती है उसका
सुरक्षा कवच
फिर भी वो
कहलाता है “रक्षक”।
कहलाता है रक्षक और
पूजा जाता है पति बन
कार्तिक की चौथ को,
बेटा बन
अहोई अष्टमी को
और भाई बन
श्रावण मास की पूर्णिमा को
ताकि पा सके
लंबी उम्र।
विडंबना तो देखो
एक बेटी जीवित रहती है
लाखों हिकारतों,
करोड़ों बद्दुआओं के बाद भी,
उसे नहीं है ज़रूरत
किसी सुरक्षा कवच की
क्योंकि-
ना ही है वो कोई देवी,ना ही माता
इस धरती पर
नहीं रखता व्रत कोई
उसकी लंबी उम्र के लिए,
वो तो पूजी जाती है बस
मंदिरों में ही
दिखावे के लिए।
-डॉ. प्रज्ञा शारदा