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विश्व हिन्दी दिवस पर ग्लोबर फाउंडेशन सिंगापुर द्वारा शिखर सम्मेलन का आयोजन

डॉ साकेत सहाय, डॉ मीना महाजन, सुरेश मंशारामानी चर्चा के पैनल में

नई दिल्ली। विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर ग्लोबल हिंदी फाउंडेशन सिंगापुर और 3 कैटलिस्ट द्वारा 11 जनवरी को प्रतिष्ठित द क्लेरियस होटल, नई दिल्ली में हिंदी उत्कृष्टता शिखर सम्मेलन (एचईपी 2020) का आयोजन किया गया। सम्मेलन की संकल्पना प्रयोजनमूलक हिंदी के विभिन्न आयामों को समेटे हुए समृद्ध भारत के निर्माण मेंहिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका पर आधारित रही। सम्मेलन के दौरान दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा की भूमिका को सशक्त भारत के निर्माण में विशेष रूप सेरेखांकित किया गया। 

इस सम्मेलन में जनसंचार, शिक्षा, उद्योग, तथा नवोन्मेष से जुड़े विभिन्न विशेषज्ञोंको आमंत्रित किया गया। यह सम्मेलन भाषा, प्रशासन, जनसंचार, शिक्षा, तकनीक एवं उद्योग में हिंदी की भूमिका को समझने के साथ ही भारत के नव नव उद्यमियों द्वारा शुरू किए गए स्टार्ट-अप इकोसिस्टम तथा कॉरपोरेट जगत में मुख्यधारा की संचार भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने हेतु एक स्थायी प्रभाव डालने में सफल रहा।

इस सम्मेलन के आयोजकों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के SDG लक्ष्यों के साथ प्रतिबद्धता जताते हुए “आटावेयर”, “कुटदाना – थ्रेड क्राफ्ट द्वारा निर्मित कपड़े के थैले, स्मृति चिन्ह के रूप में पौधे” पर्यावरणानुकूल प्लेट एवं कटलरी के प्रयोग के साथ ही एक शून्य डिस्पोजेबल प्लास्टिक पहल को अपना समर्थन दिया। एक प्रकार से इस सम्मेलन ने वर्तमान एवं भविष्य की चुनौतियों को समझते हुए भाषा एवं पर्यावरण की समर्थता को आवाज देकर विशिष्ट पहल की शुरूआत की है।

पद्मश्री से सम्मानित डॉ.मोहसिन वली द्वारा मुख्य संबोधन दियागया,उन्होंने अपने संबोधन में भावी पीढ़ी को हिंदी को अपनाने हेतु इसे रोचक एवं दिलचस्प बनाए रखने पर ज़ोर दिया।  उन्होंने अपने बचपन में पढ़े प्रसिद्ध हिंदी कवियों को उद्धृत करते हुए, इस बात पर जोर दिया कि हिंदी को स्वीकार करना हम सभी के लिए स्वाभाविक है, पर इसकी सशक्तता के लिए हमें अधिक जागरूक एवं मौलिक रहने की आवश्यकता है।

सम्मेलन के दौरान भाषा एवं जनसंचार,भाषा एवं उद्योग, भाषा एवं शिक्षा तथा भाषा एवं नवोन्मेष आदि विषयों पर पैनल चर्चा का आयोजन किया गया।  इसके तहत पहले पैनल में ‘जनसंचार में भाषा’ की भूमिका  विषयक चर्चा की गई।  इस पैनल में डॉ मीना महाजन, सुरेश मंशारामानी, डॉ साकेत सहाय एवंविवेक अत्रे शामिल थे।  इस दौरान सभी पैनलिस्ट इस तथ्य से एकमत से सहमत थे कि भारत में जनसंचार में हिंदी की भूमिका प्रमाणित है।  इसे हम सोशल मीडिया एवं विभिन्न चैनलों पर हिंदी दर्शकों की संख्या से समझ सकते हैं। अपने लेखन हेतु भारत सरकार से सम्मानित डॉ साकेत सहाय ने जनसंचार में हिंदी की भूमिका के बारे में बताते हुए है कहा कि कभी महाकवि कालीदास ने हिंदी की प्रारंभिक रूप अपभ्रंश में कुमारसंभव की रचना की थी। यह उस काल में हिंदी की भूमिका को समझने हेतु काफी है।  आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों ने हिंदी की भूमिका को सशक्तता के साथ स्थापित किया है।  डॉ साकेत ने हिंदी समाचार पत्र, पुस्तकों के अध्ययन पर जोर दिया।  साथ ही घरों में हिंदी को पर्याप्त सम्मान देने की बात कहीं। भुतपूर्व आईएएस विवेक अत्रे ने हिंदी की मजबूत प्रसारण क्षमता को समझने की बात कहीं। 

दूसरा पैनल उद्योग 4.0 एवं भाषा पर आधारित था,जिसमें यह तथ्य उजागर किया गया था कि बाजार अपनी भाषा निर्धारित करता है और यह आपूर्ति और मांग का मामला है। उद्योग 4.0 के पैनलिस्ट थे – सुश्री रेखा शर्मा, श्री सौरभ गोयल और श्री अनुभव श्रीवास्तव, जिन्होंने अपने-अपने उद्योगों में भाषा की भूमिका के कई पहलुओं को साझा किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि आप किस भाषा में बात करते हैं, बल्कि कौशल की है। 

तीसरे पैनल विमर्शने शिक्षा में भाषा की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया और हिंदी और स्थानीय भाषाओं के साथ युवाओं को सही तरीके से जोड़ने के लिए शिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार के विभिन्न क्षेत्रों की खोज किएजानेपर अपना विमर्श प्रस्तुत किया।  इस पैनल में सुश्री रेणु हुसैन, डॉ.सौम्या बडग़ायन तथाश्री सैम बैसला शामिल थे।  इस पैनल ने सांस्कृतिक विरासत के महत्व को बेहतर ढंग से समझने तथा आत्मविश्वास और सफल लोगों के रूप में विकसित होने के लिए छात्रों के समग्र विकास के महत्व को सामने लाया। 

इस अवसर पर सुश्री वंदना कपूर, एसएलएस डीएवी स्कूल की संस्थापक प्रधानाचार्य, मौसम विहार नेअपने अनुभवोंको साझा किया कि कैसे स्थानीय भाषाओं का एकीकरण एक छात्र के सीखने की अवस्था में सुधार करता है और उन्हें अधिक रचनात्मक बनाता है।उन्होंने समग्रता के साथ बच्चों और राष्ट्र के विकास में भाषा और सांस्कृतिक विविधता के महत्व पर जोर दिया।

अंतिम पैनल चर्चा नवोन्मेषी तकनीक में भाषा की भूमिका पर आधारित थी।  इस पैनल में प्रसिद्ध तकनीकीविद् बालेन्दु शर्मा ‘दाधीच’, राजीव जायसवाल, संजय कुमार सूर्यवंशी शामिल रहे।  बालेंदु जी ने हिंदी में STEM शिक्षा के विकास पर जोर दिया और बेहतर समर्थन पाने के लिए देशी भाषा तथा हिंदी बेल्ट के नवचिंतकोंको सशक्त बनाने की बात कही।  साथी पैनलिस्ट राजीव जायसवालने साझा किया कि कैसे छोटी शुरुआत बड़े प्रभाव को जन्म दे सकती है।एक अन्य प्रख्यात पैनलिस्ट, संजय कुमार ‘सूर्यवंशी’ ने अफ्रीका और भारत के टियर 2-3 क्षेत्रों में अपने काम को दर्शाते हुए इस बात पर सहमति जताई कि नवाचार में ऐसी भाषा की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय हितों कोबेहतर तरीके से समझ सकता है।

प्रोफेसर अवनीश कुमार, निदेशक, वैज्ञानिक एवं तकनीकीशब्दावली आयोग, भारत सरकार ने एक विशेष संबोधन में यह बताया कि हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रसार से भारतीय संस्कृति और विविधता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के काम के बारे में भी बताया।  साथ ही यह भी कहा कि भारत सरकार सामुदायिक लाभ एवं राष्ट्रीय विकास हेतु हिंदी में तकनीकी जानकारी के विकास,अनुवाद में सहजता हेतु कार्य कर रही है।प्रो.अवनीश ने सभी के सहयोग का आह्वान किया। 

इस शिखर सम्मेलन की अनूठी विशेषता यह रही कि विशिष्ट क्षेत्रों, शिक्षा, जन संचार, उद्योग 4.0 और नवाचार पर विचार-विमर्श सभी कुछ हिंदी में किए गए,जिससे यह संदेशगया कि भाषाओं के प्रयोग को जटिल बनाने की आवश्यकता नहीं।  यह सम्मेलन अपने उद्देश्य में सफल रहा कि भारतीय संस्कृति एवंविविधता को बढ़ावा देने  के साथ ही हिंदी की भूमिका उद्योग एवं तकनीक में भी है। 

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