छत्तीसगढ़रायपुर

भूपेश बघेल ने कहा- मोदी सरकार के काले कानून से 60 करोड़ किसान बर्बादी के कगार पर होंगे

बड़े उद्योगपतियों को मालामाल करने बनाया गया कानून

 

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया तीनों कानून से किसान और मजदूर बर्बाद हो जाएंगे। इस कानून से छोटे कारोबारियों की आजीविका खतरे में पड़ने वाली है। पूंजीपतियों को मालामाल कराना चाहती है केंद्र सरकार।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज नागपुर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन काले क़ानून से किसान और कृषि मज़दूर बर्बाद होंगे, उपभोक्ता से मनमाना क़ीमत वसूल की जाएगी और पूंजीपति कारोबारी मालामाल होंगे। केंद्र की मोदी सरकार ने अवैधानिक तरीक़ों से तीन विधेयक संसद से पारित करवाए हैं जिनमें पहला – कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020। इसे ‘एक राष्ट्र एक बाज़ार’ का क़ानून कहा जा रहा है और अंग्रेज़ी में APMC। दूसरा –  कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020। इस क़ानून के ज़रिए किसानों को कान्ट्रैक्ट फार्मिंग की ओर धकेलने की कोशिश की जा सकती है। तीसरा – आवश्यक वस्तु (संशोधक) विधेयक 2020। इस क़ानून के तहत आपदा एवं युद्ध काल के अलावा खाद्यान्न भंडारण की सीमा ख़त्म की जा रही है.

ये तीनों काले क़ानून हैं और तय है कि इस क़ानून के लागू होने से देश में किसानों, कृषि मज़दूरों, मंडी मज़दूरों, कर्मचारियों और छोटे दुकानदारों की आजीविका ख़तरे में पड़ने वाली है. इससे प्रदेशों की अर्थव्यवस्था पर बड़ी चोट पहुंचेगी और इन सबसे ऊपर देश का हर उपभोक्ता आने वाले दिनों में आलू-प्याज़ से लेकर अनाज तक हर उस सामान को अनाप-शनाप क़ीमत पर मजबूर होने वाला है.

क़ीमतें बड़े कॉर्पोरेट घराने तय करेंगे और उनका ही सारे व्यावसाय पर एकाधिकार रहेगा.

ये तीनों क़ानून देश के 60 करोड़ से अधिक किसानों और खेती-बाड़ी को बर्बाद करने का षडयंत्र है और इस बर्बादी के ज़रिए मोदी सरकार देश के कुछ उद्योगपतियों-कारोबारियों को मालामाल करना चाहती है.

अगर ये क़ानून लागू हुए तो भारत में हरित क्रांति से हासिल हुई सारी उपलब्धि उलट जाएगी और किसान बंधुआ मज़दूर में बदल जाएगा. इसी तरह छोटे व्यापारी और कारोबारी भी अनुबंधित कारोबारी में बदल जाएंगे.

जिस तरह से मोदी सरकार ने लोकसभा में इसे बहुमत के बल पर पारित करवाया है और राज्य सभा में बहुमत की अनदेखी करते हुए विपक्षी सांसदों की मांग को दरकिनार किया है, उससे भी यह तय दिख रहा है कि मोदी सरकार की नीयत ठीक नहीं है.

क्यों कर रही है कांग्रेस इन क़ानूनों का विरोध

  1. अगर अनाजमंडी-सब्जीमंडी व्यवस्था यानि APMC पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी, तो ‘कृषि उपज खरीद प्रणाली’ भी पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) कैसे मिलेगा, कहां मिलेगा और कौन देगा?

क्या FCI साढ़े 15 करोड़ किसानों के खेत से एमएसपी पर उनकी फसल की खरीद कर सकती है? अगर बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा किसान की फसल को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी कौन देगा? एमएसपी पर फसल न खरीदने की क्या सजा होगी? मोदी जी इनमें से किसी बात का जवाब नहीं दे रहे हैं.

APMC ख़त्म करने से किसानों का कोई भला नहीं होने वाला है.

इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। 2006 में APMC ACT यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। क्या बिहार के किसानों का भला हो गया?? वहां किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफा कमा MSP पर बेच देते हैं।

अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान और खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा मुट्ठीभर पूंजीपतियों को।

  1. मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है।

आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु सच यह है कि देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। उसके पास 2 एकड़ या उससे कम ज़मीन है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता या बेच सकता है।

मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।

  1. मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।
  2. अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही राज्यों की आय भी खत्म हो जाएगी। मंडी की व्यवस्था ख़त्म होते ही राज्यों को मंडी टैक्स मिलना बंद हो जाएगा। इसी टैक्स के पैसों से कृषकों के लिए अधोसंरचना का निर्माण होता है। आढ़तियों को कमीशन नहीं मिलेगा। यह पैसा किसानों की जेब से नहीं बल्कि मंडियों से ख़रीद करने वाली भारत सरकार की एजेंसी और निजी लोगों से मिलता है।
  3. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ की बचत हो।

इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।

  1. अध्यादेश के माध्यम से किसान को ‘ठेका प्रथा’ में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। वह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कुचक्र में फंस जाएगा।

हमारे पास उदाहरण मौजूद हैं कि कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनियां किस तरह से किसानों का शोषण करती हैं।

जब मंडी व्यवस्था खत्म होगी तो किसान केवल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा और बड़ी कंपनियां किसान के खेत में उसकी फसल की मनमर्जी की कीमत निर्धारित करेंगी।

एक तरह से नई जमींदारी प्रथा शुरु हो जाएगी।

  1. कृषि उत्पाद, खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियों की स्टॉक लिमिट यानी भंडारण की सीमा को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाएगा. यानी कोई भी कारोबारी चाहे जितनी मात्रा में आलू -प्याज़, अनाज, दलहन तिलहन ख़रीद कर जमा करके रख सकेगा और सरकार पूछ भी नहीं सकेगी कि वह अपनी सामग्री बाज़ार में बेच क्यों नहीं रहा है।

बड़े व्यावसायिक घराने सस्ते भाव खरीदकर, कानूनन जमाखोरी कर महंगे दामों पर चीजों को बेच पाएंगे। जब स्टॉक की सीमा ही खत्म हो जाएगी, तो जमाखोरों और कालाबाजारों को उपभोक्ता को लूटने की पूरी आजादी होगी।

  1. तीनों अध्यादेश ‘संघीय ढांचे’ पर सीधे-सीधे हमला हैं। ‘खेती’ व ‘मंडियां’ संविधान के सातवें शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं। परंतु मोदी सरकार ने राज्यों से सलाह मशविरा करना तक उचित नहीं समझा।

कांग्रेस की मांग

  1. हम राष्ट्रपति से भी मांग करते हैं कि वे इन काले क़ानूनों पर हस्ताक्षर न करें और संसद को वापस भेज दें.
  2. कांग्रेस किसानों और किसान संगठनों के साथ है और मांग करती है कि तीनों काले क़ानूनों को मोदी सरकार तुरंत वापस ले.
  3. राज्यसभा में सांसदों के अपमान और नियम क़ानूनों की धज्जियां उड़ाने के लिए भाजपा देश से माफ़ी मांगे.
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