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नवा छत्तीसगढ़ के 36 माह: चल पड़ी विकास की गाड़ी, चला रही कोरबा की नारी…

कोरबा । मानव सभ्यताओं के विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरातन काल से लेकर आज भी जारी है और जब तक जीवन है तब तक जीवनदायिनी मातृशक्ति ही इसकी संवाहक बनी रहेगी। कोरबा जिले में शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं से जुड़कर महिलाओं ने विकास की गाड़ी को गति दे दी है। गांवो से लेकर शहरों तक, घर-गृहस्थी से लेकर आजीविका तक हर क्षेत्र में कोरबा की महिलाएं पुरूषों के साथ कांधे से कांधा मिलाकर अपने और अपने जिले-प्रदेश की उत्तरोत्तर प्रगति में योगदान दे रहीं हैं। महिलाओं की सहनशीलता, संवदेनशीलता और कर्मठता ने ही कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का हौसला दिया है और छोटे-छोटे अवसरों को आजीविका के बड़े साधन के रूप में विकसित होने का मौका भी प्रदान किया है। सरकार की गोबर खरीदी योजना और गोबर से गमले, आकर्षक मूर्तियांे, कलाकृतियों से लेकर अगरबत्ती और गोबर काष्ठ बनाना जैसे कामों से जुड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तेज करने का महिलाओं का प्रयास इसका जीवंत उदाहरण है।

छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में बिजली उत्पादन के लिए जाने जाने वाले कोरबा जिले को पर्यटन के मानचित्र पर भी अब सशक्त पहचान मिल गई है, परंतु जिले की यह पहचान किसी और के कारण नहीं बल्कि यहां की मातृ शक्ति से है। टीम कोरबा में शामिल प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ-साथ जिले के महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यों का भी इसमें बड़ा योगदान है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी जिले में महिलाओं को मजबूत और अधिकार सम्पन्न बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महिला स्वास्थ्य या पोषण का मामला हो, रोजगार और आजीविका से जुड़ने की गतिविधियां, खेल-कूद हो या खेती-किसानी और पशुपालन… हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी ने शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों की सफलता तय की है।

राज्य सरकार ने जब नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी विकास कार्यक्रम शुरू किया तो कोरबा जिले में इसके क्रियान्वयन की मैदानी स्तर पर जिम्मेदारी महिलाओं के हिस्से आई। गौठान समितियों के माध्यम से गौठानों के संचालन से लेकर गौठानों को आजीविका के बहुआयामी केन्द्र के रूप में विकसित करने में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा। कोरबा जिले में संचालित लगभग 250 गौठानों का पूरा प्रबंधन महिलाओं के हाथ में है। इन गौठानों मंे डे-केयर के रूप में पशुओं की देखभाल के साथ-साथ वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, गोबर खरीदी, गोबर से विभिन्न उत्पादों का निर्माण, मुर्गी पालन, रेशम धागाकरण, मछली पालन, सब्जी उत्पादन, चारा उत्पादन जैसी सभी गतिविधियां महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यो द्वारा संचालित हैं। गौठानों में चारागाह के प्रबंधन से लेकर सब्जी उत्पादन का काम भी महिला समूह ही कर रहे हैं। 91 गौठानों को इन महिलाओं ने ही मल्टी एक्टिविटी सेंटर के रूप में विकसित कर दिया है। 717 महिला स्वसहायता समूहों द्वारा इन मल्टी एक्टिविटी सेंटरों में आजीविका गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है। इससे इन महिलाओं को अच्छी आय भी हो जा रही है। पिछले वर्ष 44 गौठानों में 179 एकड़ रकबे में चारागाह विकसित किए गए हैं जिससे 54 हजार से अधिक पशुओं को खाने के लिए हरा चारा मिला है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक गोधन न्याय योजना भी है। कोरबा जिले में इस योजना के संचालन का पूरा दारोमदार महिला स्वसहायता समूहों पर ही टिका है। 215 गौठानों में अब तक डेढ़ लाख क्ंिवटल से अधिक गोबर की खरीदी की जा चुकी है। इसके बदले 10 हजार से अधिक गोबर संग्राहकों को लगभग तीन करोड़ रूपए का भुगतान भी हो गया है। इसमें से करीब सवा करोड़ रूपए सीधे समूह की महिलाओं को मिला है। खरीदे गए गोबर से महिलाओं ने गौठानों में लगभग 29 हजार क्ंिवटल वर्मी खाद बनाया है जिसकी बिक्री से तीन करोड़ 72 लाख रूपए मिले हैं। स्वसहायता समूहों की तीन हजार 712 महिलाएं इससे लाभान्वित हुई हैं।

कोरबा जिले में नौ हजार 906 महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से लगभग एक लाख 15 हजार महिलाओं का एक बड़ा और मजबूत संगठन है। हरे कृष्णा स्व सहायता समूह, धन लक्ष्मी स्व सहायता समूह, पूजा स्व सहायता समूह, सरस्वती स्व सहायता समूह, साईं स्व सहायता समूह, बेबी स्व सहायता समूह, जय संतोषी मां स्व सहायता समूह और ऐसे मातृ शक्ति प्रेरित नामों के कई समूह कोरबा जिले को महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाने में लगे हैं। लगभग 53 हजार बाड़ियां भी जिले में विकसित की गई हैं। 124 सामुदायिक बाड़ियां चारागाहों में और 56 सामुदायिक बाड़ियां वन अधिकार पत्रों से मिली भूमि पर भी बनाई जा चुकी हैं। इन बाड़ियों में दो हजार से अधिक किसान और महिलाएं सब्जी उत्पादन में लगीं है। छह हजार से अधिक परिवारों को संतुलित पोषण आहार के साथ-साथ महिला समूहों की सदस्यों को औसतन तीन से साढ़े तीन हजार रूपए प्रतिमाह की आय भी इन बाड़ियों से हो रही है।

कोरबा जिले में सतरेंगा पर्यटन स्थल के संवर्धन और उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में महिलाओं की विशेष भूमिका रही है। महिला समूहों द्वारा यहां आने वाले पर्यटकों के खाने-पीने के लिए सर्वसुविधा युक्त सतरेंगा कैफेटेरिया का संचालन किया जा रहा है। इडली, दोसा, चाउमीन के साथ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक फरा, चीला, ठेठरी-खुर्मी व्यंजनों से पर्यटकों का पेट ही नहीं बल्कि मन भी संतृप्त हो रहा है। सतरेंगा में संचालित होने वाले रिसॉर्ट में भी स्थानीय युवतियों को ही काम पर रखा गया है। कैफेटेरिया से लेकर साफ-सफाई तक की समितियों मे महिलाओं को शामिल कर पर्यटन से रोजगार की अवधारणा को सतरेंगा मंे ही मूर्तरूप मिला है। सतरेंगा को पर्यटको के लिए विकसित कर देने से लगभग 30 स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों की 250 से अधिक महिलाओं को आजीविका के अलग-अलग साधन मिले हैं और वे हर महीने पांच हजार से लेकर 10 हजार रूपए तक की आय प्राप्त कर रहीं हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार की महिला कोष ऋण योजना ने भी महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिला एवं बाल विकास विभाग की विभिन्न पोषण योजनाओं के लिए 89 समूहों की लगभग 900 महिलाएं रेडी टु इट बनाने का काम कर रहीं हैं। एक हजार 600 से अधिक समूहों की 17 हजार से अधिक महिलाएं गर्म पका भोजन तैयार कर कुपोषित बच्चों और गर्भवती माताओं को रोज खिला रहे हैं। महिलाओं से जुड़े कामों के साथ-साथ पुरूषों के एकाधिकार वाले कई जीविकोपार्जन के काम कोरबा जिले में महिला समूहों द्वारा किए जा रहे हैं। ईंट निर्माण, चांवल व्यवसाय, आंटा चक्की संचालन, कोशा धागाकरण, सिलाई व्यवसाय, किराना-कपड़ा मनिहारी व्यवसाय, मसाला व्यवसाय, पापड़ निर्माण, बांस-शिल्प व्यवसाय से लेकर वनोपज संग्रह, साबुन, रंग, गुलाल निर्माण जैसे कामों में महिला समूहों की सदस्यों ने अपनी क्षमता और कार्य कुशलता का  उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। महिला कोष के माध्यम से जिले के दो हजार 114 समूहों को अभी तक अपना व्यवसाय करने के लिए 25 से 30 हजार रूपए के हिसाब से चार करोड़ 41 लाख रूपए से ज्यादा का ऋण दिया गया है। इसमें खास बात यह है कि ऋण लेने के बाद समूहों ने अपनी कर्मठता और मेहनत से व्यवसाय को आगे बढ़ाया, अच्छी आमदनी प्राप्त की और लगभग 95 प्रतिशत से अधिक समूहों ने ऋण की अदायगी भी कर दी है। ग्रामीण क्षेत्रो में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए 149 बैंक सखियां भी काम कर रहीं हैं। पेंशन या स्कॉलरशीप का भुगतान हो या मनरेगा की मजूदरी देना हो, बैंक खाते से राशि निकालना हो या बचत के लिए जमा करना हो ऐसे सभी काम लोगों के घर जाकर बैंक सखियों के माध्यम से आसानी से हो रहे हैं।

वैश्विक महामारी कोरोना के काल में भी जिले की महिलाओं ने जनजागरूकता से लेकर कोरोना मरीजों के ईलाज तक की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। महिला डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारी सभी महिलाओं ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अपने अनुभव का अच्छी तरह उपयोग किया। महिला होने के नाते पारिवारिक ही नहीं सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर भी बारिकियांे का ध्यान रख कोरोना संक्रमण से बचाव की रणनीति तैयार की गई। परिवार के बुजुर्गों से लेकर छोटे बच्चों तक को संक्रमण से बचाए रखने के लिए सुबह से शाम तक के क्रियाकलापों का गहन विश्लेषण करते हुए तैयार रणनीति का ही परिणाम था कि जिले का कोरोना बचाव मॉडल दूसरे जिलों और राज्यों के लिए अनुकरणीय हो गया। संक्रमण के प्रारंभिक दौर में महिला समूहों ने मास्क और सेनेटाइजर बनाकर वितरण करके अपनी संवेदनशीलता और सजगता की मिसाल पेश की। मितानिनों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य कर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना संक्रमितों की पहचान में अपना बहुमूल्य योगदान दिया, तो जिले की महिला शिक्षकों ने भी मोहल्ला क्लास, पढ़ई तुंहर दुआर, ऑनलाइन क्लास जैसे उपायांे से बच्चों की पढ़ाई जारी रखी।

महिलाओं को शिक्षा और आजीविका से जोड़ने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान प्रशासन द्वारा रखा गया है। हाट-बाजार क्लीनिक योजना और मोहल्ला क्लीनिक से पुरूषों ही नहीं बड़ी संख्या में महिलाओं को भी ईलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। जिले में जल्द ही दाई-दीदी क्लीनिक भी शुरू होने को है, जहां महिला डॉक्टरों और महिला स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा केवल बीमार महिलाओं का ईलाज और अन्य स्वास्थ्य जांच की जाएंगी। महिलाओं और किशोरी बालिकाओं को स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक रखने के लिए जिले में विशेष अभियान मिशन शक्ति भी संचालित किया जा चुका है। जिसके तहत लगभग डेढ़ लाख महिला एवं किशोरी बालिकाओं के खून की जांच, सिकिल सेल जांच आदि संबंधी स्वास्थ्य परीक्षण किए गए हैं। बीमार महिलाओं और बालिकाओं का ईलाज किया गया है। जिले में कुपोषण में लगभग पांच प्रतिशत की कमी हुई है। कोरोना संक्रमण के दौरान मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के तहत नियमित रूप से 52 हजार 922 हितग्राहियों को सूखे राशन का वितरण भी किया गया है। जिले में सुपोषित जननी योजना के तहत 21 हजार 215 गर्भवती और शिशुवती माताओं को अतिरिक्त पोषण आहार के रूप में अण्डा, मूंगफली-लड्डु और चिक्की के साथ गर्म भोजन भी उपलब्ध कराया गया है ताकि जच्चा-बच्चा स्वस्थ रहें और स्वस्थ पीढ़ी का विकास हो।

यह सब ज्ञात है कि महिलाएं ही समाज की वास्तविक वास्तुकार हैं। समाज, प्रदेश और किसी राष्ट्र को तब तक शिखर पर नहीं पहुंचाया जा सकता जब तक कि उसकी मातृशक्ति कंधे से कंधा मिलाकर न चलें। कोरबा में महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से विकास की गाड़ी चल पड़ी है और नित नए आयाम प्राप्त कर रही है।

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