लेखक की कलम से

तनाव मुक्त रहने के ये सहज उपाय….

#आलेख

आज की व्यस्ततम जीवन शैली जीने के तरीके और प्रतिद्वन्द्विता के साथ आगे बढ़ने की होड़। अथाह पैसा कमाने की चाह।और आधुनिक होता मानव। इंसानी जिंदगी को छोड़ मशीनी जिंदगी की तरफ़ रुख। एकांत से जुझता रिश्तों से दूर होता आज का समाज।

प्रतिस्पर्धा के इस युग में इंसान डिजिटल होता जा रहा।मोबाइल में कैद रिश्तों से वह पल भर तो ख़ुशी हासिल कर सकता हैं पर जब वह वास्तविक दुनियाँ में लौटता हैं तो सिर्फ एकांत से जुझता हैं नतीजा अवसाद और तनाव।

 अपनों को खोता।समय के हिसाब से कह जी तोड़ मेहनत करता हैं पर उसके मुताबिक उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार फ़ीसदी उसके मुताबिक नही होता नतीजा तनाव। आज छोटे से बड़े तक सभी तनाव में हैं।चाहे वह विद्यार्थी हो।नोकरी पेशा हो या साधारण गृहिणी। समय नुसार माहौल भी बदला असुरक्षा, अराजकता ,सत्ता आंतकवाद और स्त्रियों पर होते अपराध हम सभी किसी नकिसी समस्या से जूझ रहे हैं।

हम मनुष्य ही नही पूरा तबका एक गंभीर मसलो से जूझ रहा।और उतना ही हम तनावपूर्ण माहौल में खुद को स्थापित करने की भरसक कोशिश में लगे हैं।

व्यस्ततम जिंदगी में शांति मानो हैं ही नही।ऐसे में हमे चाहिए की इस भागदौड़ से खुद के लिए वक्त निकाले। रिश्तों को महत्व दे।दोस्तों संगी साथियों के साथ थोडा जिएँ। शायद एकांत को मात देने में हम सक्षम हो जाएँ। संतुलित खान पान थोडा व्यायाम थोड़ी कसरत थोडा योग। थोडा परिवार के साथ मेल जोल और तनाव कम।बातचीत का दायरा अपनों से बढ़ाना होगा। एक स्वछंद हँसी को मुकाम मिलेगा हम हँसेंगे जग हँसेगा नतीजा तनाव कम।

बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार शिक्षा को लेकर थोड़ी कम सख़्ती।और हाँ थोडा बच्चा बनना होगा नतीजा बच्चों में अवसाद की कमी। हम एक दूजे के मित्र बने यक़ीनन तनाव कम होगा।संगीत को माध्यम बनाकर जिंदगी को गुनगुनाकर देखिये जिंदगी नाच उठेगी। मोबाइल और डिजिटल उपकरों को थोड़ी देर के लिए कहीं दूर छुपा दें ठीक उसी तरह जैसे हमने रिश्तें को दरकिनार किया था।फिर देखिए अपनों से मिलने का सुख।उस मुस्कान की सेल्फी #?#आहा

यही चन्द तरीके हैं मेरी नज़र में जो तनाव से मुक्त कर सकते हम सभी।जिएँ खुब जिएँ खुलकर मुस्कुराइए रिश्तों और मित्रो का दायरा बढ़ाइए और हाँ जिंदगी पल भर की हैं यह याद रखते हुए आज और अभी को साकार करें। हम हैं तो जिंदगी।तनाव को मिलकर खत्म करें खुश रहे और मुस्कुराइए????☺☺

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ               

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