मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश के भिंड जिले की गोरमी तहसील में लगता है अनोखा मेला, मेले में एक दिन की बागडोर होती है सिर्फ नारी शक्ति के हाथ ….

भोपाल/भिंड। मध्यप्रदेश के भिंड जिले की गोरमी तहसील में इन दिनों 5 दिवसीय जलविहार मेले की धूम मची हुई है। इसमें क्षेत्र के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। 182 साल से लग रहे इस मेले की खासियत यह है कि एक दिन मेले की बागडोर केवल महिलाओं के हाथ में रहती है। मेले में दुकानदार और खरीदार महिलाएं ही रहती हैं। इस दिन मेले में पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित रहता है। इतना ही नहीं प्रवेश द्वार से लेकर मेले में सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए महिला पुलिसकर्मियों की ही ड्यूटी लगाई जाती है।

गोरमी तहसील का जलविहार मेला ग्वालियर-चंबल संभाग का एक मात्र ऐसा मेला है। जहां मेले में एक दिन पूरी व्यवस्थाएं महिलाएं ही संभालती हैं। इस दिन मेले में महिलाएं घूंघट की ओट से पूरी तरह आजाद नजर आईं। इस मेले के आयोजन को लेकर महिलाओं को काफी इंतजार रहता है। हालांकि कोविड की वजह से पिछले दो साल इस मेले का आयोजन नहीं हो सका था। इस वजह से बुधवार को लगे मेले में महिलाओं ने जमकर खरीदारी की। जलविहार मेले में  इस बार करीब सवा सौ दुकानें लगी हुई हैं। बुधवार को मेले के दूसरे दिन जहां दुकानें महिलाएं संभाल रही थीं, वहीं खरीदार महिलाएं व युवतियां थीं। साथ ही मेले में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए महिला पुलिसकर्मी तैनात थीं। मेले में पुरुषों के जाने पर पूरी तरह से रोक थी। मेला की व्यवस्था बनाने के लिए मंदिर समिति, पुलिस और राजस्व विभाग की टीम मौजूद रहीं।

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है उद्देश्य

गोरमी में बड़ी जग्गा कालिया मर्दन (श्रीकृष्ण) भगवान का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर क्षेत्र के लोगों की विशेष आस्था का केंद्र है। 182 साल पहले फूल डोल ग्यारस पर्व पर जलविहार मेले का शुभारंभ किया गया था। वहीं मेले के दूसरे दिन मेले की बागडोर महिलाओं के हाथ देने की शुरुआत मंदिर के महंत स्व. केशवदास महाराज द्वारा की गई थी। एक दिन के लिए मेले की बागडोर महिलाओं के हाथ देने के पीछे मंदिर के महंत का उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना था।

बढ़ता है आत्मविश्वास- महिला दुकानदार

महिला दुकानदार गुड्डी बेगम के अनुसार गोरमी में मेला सालों से लगता आ रहा है। हम हर साल मेले में दुकान लगाने के लिए आते हैं। मेले में सिर्फ महिलाएं आने के कारण पुरुष नहीं आते हैं। इसलिए हमें भी एक दिन दुकान संभालने का मौका मिलता है। इस एक दिन में बहुत कुछ सीखने का मिलता है। साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इस मेले में मेरे साथ मेरी मां भी दुकान संभाल रही हैं। एक अन्य दुकानदार नीतू भदौरिया ने बताया कि हमें इस मेले का इंतजार सालभर रहता है। अन्य जगहों पर लगने वाले मेलों में पुरुष भी रहते हैं, लेकिन इस मेले में सिर्फ महिलाएं ही रहती हैं। महिलाओं के लिए एक दिन लगने वाले इस मेले को तीन से चार दिन का करना चाहिए।

गुरुओं से मिली सीख को बढ़ा रहे आगे – महंत

बड़ी जग्गा मंदिर के महंत प्रियोमदास महाराज ने बताया कि 182 साल पहले जलविहार मेले में इस परंपरा की शुरुआत स्व केशवदास महाराज ने की थी। इसके बाद बनवारीदास, गिरिवरदास, मदनमोहनदास, कल्याणदास, रामदास महाराज ने इसे जीवित रखा। गुरुओं से मिली सीख को अब मैं आगे बढ़ा रहा हूं। बुधवार को लगे मेले में पुरुषों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है। प्रशासन की टीम इस व्यवस्था को बखूबी से संभाल रही है।

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