लेखक की कलम से
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे…
छोड़कर के गरीबों की थाली को तुम
क्यों अमीरों की थाली सजाने लगे
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे
कभी रोते थे हम जो मगरमच्छ के आँसू
तुम तो प्याज के आँसू रुलाने लगे
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे
कभी होते थे नाज किसानों के भी
उन्हें भी क्यों तुम तड़पाने लगे
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे
देखो बिन तेरे सब्जियाँ भाती नहीं
बेवफाई से क्यों पेश आने लगे
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे
कैसे लाऊँ रसोई में बोलो तुम्हें
दिनों-दिन अब बजट गड़बड़ाने लगे
वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे…
@विभा देवी, पटना