लेखक की कलम से
हर हर गंगे ….
जगत तारिणी माँ कहे , तुमको यह संसार ।
तन-मन पावन कर रही ,बहा रही रसधार ।।१
हर-हर गंगे बोल के ,करो सखा जयघोष ।
जीवन में भर जाएगा , सुखद भाव संतोष ।।२
नदी मात्र समझो नहीं ,ये मुक्ति का द्वार ।
सत्य सनातन देश का ,रचा-बसा संस्कार ।।३
तेरी पूजा आरती , बैठे देखूं नाव ।
उमड़-घुमड़ करने लगे , अंतर मन के भाव ।।४
पावन गंगा है जहां , मांगू जीवन अंत ।
परम धाम है मोक्ष का , कहते साधू- संत ।।५
©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़