सूखी अरपा किनारे सूनसान बिलासपुर …
✍■ नथमल शर्मा
बरसों बाद, मेरी उम्र के लोगों ने पहली बार इतने दिनों तक इतना सूना-सूना सा अपना शहर देखा है। एक खतरनाक विषाणु ने सबको घरों में बंद कर दिया है। इस बंद में सब कुछ बंद है। सूखी अरपा अपनी सूनी आंखों से चुप और डरे हुए अपने बिलासपुर को देख रही है। इस दुख में अरपा के आंसू भी नहीं बहते। जैसे सूख गए हों।
बिलासपुर में हमेशा ही भरपूर पानी रहा। इसकी धरती में भी और यहां रहने वालों की आंखों में भी। कुछ बरस से धरती का पानी सूख रहा। अरपा के किनारे सब प्यासे हैं। बावजूद इसके अपना बिलासपुर कभी नहीं थमा। कभी रेलवे एरिया की मुल्कराज होटल या ताजमहल होटल जो लगभग रात भर खुली ही मिलती। पुलिस और पत्रकारों को आधी रात के बाद वहीं चाय मिलती। हालांकि वह तो बरसों पहले ही बंद करवा दिए। रेलवे को ज्यादा जगह चाहिए थी। सबको कहीं किनारे बसा दिए। पर तभी से वे सब हमारी जिंदगी से भी किनारे हो गए। पुराने बस स्टैंड के भीतर दो चाय ठेले रात भर साथ देते रहे। ये सब बंद है। कई नए बाज़ार बने पर गोल बाज़ार और सदर बाज़ार की बात ही अलग रही। खासकर गोल बाज़ार जाए बिना तो जैसे दिनचर्या पूरी ही नहीं होती। वहां अपने-अपने ठीहे बने हुए हैं। मौसाजी, रज्जन भैया का पांडेय स्वीट्स तो मुन्ना भैया का पेंड्रावाला, सामने सुधीरा भैया के कमेन्ट्स तो जरा पीछे टाटा महाराज, और ढेर सारे साथी। हरदेवलाल मंदिर के किनारे चाय दुकान पर कुछ बुद्धिजीवी कहलाने वालों की चाय की चुस्कियां। अनाज दलालों की गद्दियों पर भाव- ताव और लगे हुए शनीचरी बाज़ार की रेलम पेल। मजे की बात कि इन ठीहों पर रोज आने वाले लोग भी फिक्स। मन्नू भैया, काली भैया, रफीक भाई,नवल, गोपाल, सुरेश, राधे, अशोक, फिरोज, भग्गू वगैरह। कभी-कभी या ज्यादातर ही धर्मजीत भी। पहले बीआर यादव, मूलचंद खंडेलवाल वगैरह। ये सब रोज आते। न ये आने से थकते और न ही जिनके यहाँ ये बैठते वे बैठाने से ऊबते। शहर की ऐसी रौनक और धड़कन रहे गोलबाजार में सन्नाटा पसरा हुआ है। कोई किसी को नहीं बुला सकता।
यहीं का हरदेवलाल मंदिर भी सूना- सूना सा है। यही क्यों सभी मंदिर सूने हैं। पुराने वेंकटेश मंदिर और वहां की संस्कृत स्कूल में गूंजते श्लोक भी सुनाई नहीं देते। रेलवे के गणपति मंदिर में हर कोई जाते रहा। कुछ तो श्रद्धावश ऐसे जुड़े कि मेरे गनु कहते। श्याम बाबा मंदिर में एक बहुत बड़ा वर्ग रोज़ ही आता। हर शनिवार बजरंगबली के दर्शन करने वालों की तादाद भी अच्छी खासी। मरीमाई मंदिर में शीतला माता और अंबा मैया के दर्शन नवरात्र में करने वालों का हुजूम होता। सड़क किनारे अनेक छोटे बड़े मंदिर तो तिफरा में काली माई की शान निराली। सबमें ही दीए तो जल रहे पर चुप चुप से ही। गोलबाजार की मस्जिद हो या डबरीपारा की मस्जिद या कि खपरगंज, कुम्हार पारा, तालापारा,तारबाहर की मस्जिदें। सबमें ही सूनसान। लोग घरों से नमाज़ अदा कर रहे। गुरुद्वारों में शबद की गूँज तो है पर सुनने वाले घरों से ही सुन रहे महसूस कर रहे। यही हाल चर्चों का भी। आश्रमों का भी। महामाया मंदिर में आज छठ से ही तिल धरने की जगह नहीं रहती। सबकी आस्था जुड़ी है वहां से। जो भी नई गाड़ी लाता वहां जरूर जाकर पूजन करवाता। इस महामाया के दरबार में देश प्रदेश के अनेक नेता, संत, शंकराचार्य सब आ चुके। आज वहां भी सब तरफ शांति ही है।
एक विषाणु ने इस तरह हम सबको अपने घरों में कैद कर दिया। प्रकृति के साथ खिलवाड़ की सज़ा तो है ही ये किसी षडयंत्र का परिणाम भी है शायद। इससे लड़ रहे हैं सब। घरों में रहकर। अरपा किनारे से अपने गांव लौट रहे हैं कुछ मजदूर। भूखे भी है और चिंतित भी। यहां पराए लोग तो दाल – रोटी देकर भेज रहे पर गांव में उनके अपने ही उन्हें भीतर आने देंगे ? इस कोरोना विषाणुओं ने सोशल डिस्टेटिंग जो बढ़ा दी है। रोज मिलने वाले घरों में है (जो जरूरी है) अरपा देख रही है अपनी सूनी आंखों से अपने बिलासपुर को।
कल शहर की कहीं और की बात …
–लेखक देशबंधु के पूर्व संपादक एवं वर्तमान में दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं।