लेखक की कलम से

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष पर जय जगत 2020 अनूठी वैश्विक पदयात्रा …

प्रसून लतांत | दुनिया भर में महात्मा गांधी की एक 150वीं जयंती मनाई गई लेकिन एकता परिषद ने प्रख्यात वरिष्ठ समाज कर्मी और गांधीवादी विचारक राज गोपाल पीवी के नेतृत्व में एक ऐसा विश्वव्यापी आयोजन किया, जिसकी चर्चा होती रहेगी। अब जब भी सत्य और अहिंसा पर केन्द्रित वैश्विक पदयात्रा की बात होगी तो राजगोपाल पीवी की जय जगत 2020 पदयात्रा को एक मिसाल की तरह याद किया जाएगा।

शांति और न्याय के लिए जय जगत 2020 पदयात्रा देश और दुनिया में महात्मा गांधी की एक 150वीं जयंती पर मनाए जाने वाले सैकड़ों विभिन्न कार्यक्रमों से बिल्कुल अलग थी। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर शुरू हुई यह पदयात्रा शांति और न्याय के लिए वैश्विक एकजुटता प्रदर्शित करने वाली रही। एक ऐसी यात्रा, जिसकी मांगों में गांधी का संदेश था। अन्तिम व्यक्ति की चिंता थी। यह यात्रा बीच में ही कोविड 19 की वजह से रुक गई लेकिन इसके व्यापक प्रभाव पड़े।

गांधी जी की 150वीं जयंती पर होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों से सचमुच अलग थी यात्रा, जिसमें अकेले भारतीय ही नहीं थे, विभिन्न देशों के नागरिक भी थे। सभी ने एक दूसरे से यात्रा के दौरान अपने अनुभवों का साझा किया और हिंदी का यह शब्द जय जगत विभिन्न देशों के नागरिकों की जुबान पर चढ़ गया है। 2 अक्टूबर को एकता परिषद के नेतृत्व में जेनेवा में भी यात्रा निकली गई और संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की गई कि वह शांति और न्याय के लिए कारगर पहल करे ताकि दुनिया खुशहाल हो सके।

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को लेकर बहुत पहले से ही अपने देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बड़ी बडी समितियों का गठन हुआ। राज्य स्तर पर भी राज्यपालों की अध्यक्षता में समितियों का गठन किया गया। इन समितियों के माध्यम से जोर शोर से देश दुनिया में गांधी जी की जयंती पूरे धूम धाम से करने की घोषणाएं की गई। इन समितियों के गठन और ऐलान से यह उम्मीद की जाने लगी थी कि गांधी जी को शानदार तरीके से अपने देश में याद किया जाएगा।

सरकार की मंशा गांधी को केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित कर देने की है ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सरकार ने इस मौके का लाभ नहीं उठाया। उल्टे गांधी जी की निन्दा करने वालों को बढ़ावा दिया गया। उम्मीद की जा रही थी कि सरकार गांधी की निन्दा करने वालों को सबक सिखाएगी। आज भी अपने देश में युवाओं में गांधी जी को लेकर अनेक भ्रम है। लेकिन एकता परिषद ने महात्मा गांधी के वास्तविक संदेश के अनुरूप एक वैश्विक पदयात्रा का आयोजन किया और उस विषमता पर उंगली उठाई कि दुनिया में संसाधनों का समुचित बटवारा नहीं हो रहा।

80 फीसदी संसाधनों पर मात्र 10 फीसद लोगों का कब्जा है और बचे हुए 20 फीसद संसाधनों पर दुनिया के अस्सी फीसद लोग जीने को मजबुर हैं। साथ ही यह संदेश भी दिया कि मौजूदा विश्व में लोकहित में नेतृत्व का घोर अभाव है, इसलिए गांधी के कहे अनुसार अब चैन से घर में बैठने का समय नहीं है, निकल चलें सड़कों पर ताकि करोड़ों लोगों को इंसाफ मिले और दुनिया में शांति बहाल हो।

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष पर गांधी से जुड़ी संस्थाओं और संगठनों ने याद किया। लेकिन इसका प्रभाव नहीं पड़ा। ज्यादातर संस्थाएं एक दूसरे से अलग थलग रहीं। उनमें एकजुटता की भी कोशिश नहीं हुई। संस्थाओं की चहारदीवारी से बाहर कुछ नहीं हुआ। सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज सम्मेलन कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा सके। युवाओं से दूर दूर ही रही। इसके पहले जब गांधी जी की सौवीं जयंती का वर्ष आया तो तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकारों ने जयंती मनाने की सारी जिम्मेदारी गांधीवादी संस्थाओं को सौंप दी थी। तब गांधीवादी संस्थाओं ने अपने ढंग से गांधी जी को याद किया था। उस समय डॉ एस एन सुब्बाराव के नेतृत्व में गांधी रेल यात्रा भी निकाली गई थी। इस रेल यात्रा में हमारे राजगोपाल पीवी भी थे।

गांधी जी की सौवीं जयंती वर्ष पर पूरे देश में अनेक कार्यक्रम हुए थे। उसके मुकाबले उनकी 150वीं जयंती पर कुछ नहीं हुआ। एकमात्र जय जगत 2020 यात्रा को ही हम उल्लेखनीय कह सकते हैं क्योंकि इस पदयात्रा के दौरान जन जन से जुड़ने की कोशिश की गई। ज्यादातर कार्यक्रम सेमिनार हाल में हुए,मैदानी कार्यक्रमों का घोर अभाव रहा। गांधी जी की 151 जयंती पर भी देश में कहीं कुछ खास नहीं हुआ।

एकता परिषद गांधी के सिद्धान्तों और आदर्शों को लेकर आज भी सक्रिय है। प्रवासी मजदूरों को राहत पहुंचाने के साथ उन्हें रोजगार मुहैया कराने के लिए प्रयत्नशील है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किए जा रहे हैं। इसके साथ अनेक रचनात्मक कार्यक्रमों को अंजाम दिया जा रहा है। शहरी युवाओं को गांवों से जोड़ने की भी अनूठी कोशिश की जा रही है। वनवासियों को जमीन दिलाने और उन्हें शोषण से बचाने के लिए भी संघर्ष कर रही है। श्रमिकों के श्रम का सदुपयोग करने की कोशिश की जा रही है।

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