लेखक की कलम से
मन ने कुछ यूँ कहा…
मन ने कुछ यूँ कहा…
बाख़ुदा बेख़ुदी नहीं जाती
मुख़्तसर सी कमी नहीं जाती
रात की धूप बनके बैठी है
दूर ये चाँदनी नहीं जाती
इक रवानी है बहते दरिया की
इश्क़ में तिश्नगी नहीं जाती
हर विदा का उसूल है शायद
आँख से जो नमी नहीं जाती
बस तमाशे का इक सबब होगी
बात दिल की कही नहीं जाती
© पूजा मिश्रा, अयोध्या, उत्तरप्रदेश