लेखक की कलम से

फ़ैसला …

जतिन के पिता टीबी की लंबी बीमारी के बाद दुनिया से विदा हो गए। पीछे रह गए जतिन और उसकी मां। जतिन स्कूल में पढ़ रहा था और उसके मां बाप बीड़ी बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। वहीं से उसके पिता को बीड़ी पीने की लत लगी थी जिसे वो टीबी के मरीज होने के बाद भी नहीं छोड़ पाए। यही कारण था कि इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाए।

फैक्ट्री का मालिक पिता की जगह जतिन को काम पर रखने को तैयार था लेकिन जतिन तैयार नहीं हुआ। मां ने भी बहुत समझाया परंतु वह अपनी बात पर अड़ा रहा। दुखी होकर मां ने उससे पूछा ,” बेटा पिता की जगह बैठे बिठाए काम मिल रहा है। तुम्हे पता नहीं है, पढ़ लिखकर भी काम के लिए कितने धक्के खाने पड़ते हैं।” जतिन ने जवाब पहले से सोच रखा था।

तुरंत बोला ,” मां, क्या तुम चाहती हो मेरा हाल भी पिताजी के जैसा हो ? रही काम की बात, तो अपने गांव वापिस चलते हैं। वहां जो थोड़ी सी ज़मीन है उसमे सब्जियां और फल भी उगाएंगे तब भी चैन से दो रोटी खा लेंगे। फिर पास के गांव में बारहवीं तक का सरकारी स्कूल है, मैं उसी में पढ़ूंगा। फीस भी कम ही है।” मां जतिन का मुंह देख रही थी। कितना बड़ा हो गया था उसका बेटा, पिता के जाने के बाद।

उसने जतिन से पूछा ,” तुझे गांव लौटने का ख़्याल कैसे आया जतिन ?” जतिन उदास हो गया। ,” मां, जब पिताजी बीमार थे तब कहा करते थे कि अच्छा होता जो मैं अपने गांव में ही खेती करता। ना तंबाकू की लत लगती और ना ही बीमार होता। बस तभी मैने सोच लिया था कि पिताजी के ठीक होते ही हम गांव चलेंगे।” कहकर वह चुप हो गया। ,” कोई बात नहीं बेटा, हम गांव में ही लौट जायेंगे। वैसे भी वहां भी अब कोई देखने वाला  नहीं है।” जतिन को मां ने गले से लगा लिया।

 

©अर्चना त्यागी, जोधपुर                                                 

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