लेखक की कलम से

समस्याओं की जननी …

“कल तक जहां नजर आते थे खेत खलिहान।

वहीं नज़र आते हैं आज केवल मकान।”

हमारा देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, लगातार बढ़ रही जनसंख्या उसका मुख्य कारण है।परन्तु दुर्भाग्य वश हम चोटी बड़ी हर समस्या के बारे में विचार करते हैं, समस्याओं की उत्पत्ति का कारण जानने की कोशिश नहीं करते हैं। सच तो यह है कि आजादी  के बाद से ही हम जनसंख्या वृद्धि को रोकने में असफल रहे हैं। यह निरंतर बढ़ती ही जा रही है। और जनसंख्या वृद्धि पर कोई चर्चा भी नहीं होती है। सरकार की ओर से कुछ प्रयास पूर्व में किए गए थे किन्तु कितने ऐसे बिंदु हैं जो सभी उपायों पर पानी फेरते अा रहे हैं। धर्मांधता, पुत्र प्राप्ति की लालसा इसमें प्रमुख हैं। हमारा दुर्भाग्य है कि बदलते समय के साथ हम अपनी मानसिकता को विकसित नहीं कर पाए हैं। संतान का जन्म यदि कुदरत की मर्जी है तो उसका भरण पोषण हमारा दायित्व है। कितने लोग इस दायित्व को नहीं समझते हैं। यही कारण है कि जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ बेरोजगारी और आपराधिक गतिविधियां भी बढ़ी हैं। आतंकवाद की जड़े भी कहीं न कहीं इसी से जुड़ी हैं। खुशी खुशी कोई आतंकवादी नहीं बन जाता। जरूरतें पूरी ना हों तो विकृत मानसिकता वाले लोग अपने प्रभाव में ले ही लेते हैं। यही आतंकवाद का मूल है।

सैकड़ों वर्ष पूर्व माल्थस नाम के एक अर्थशास्त्री ने अपने एक लेख में लिखा था। यदि बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो प्रकृति अपने क्रूर हाथों से इसे नियंत्रित करने का प्रयास करेगी। ऐसा हो भी रहा है। समझदार के लिए इशारा ही काफी है। कोरोना के रूप में प्रकृति का क्रोध अभी तक भी नियंत्रण में नहीं अा पाया है। इंसान की सारी वैज्ञानिक एवं तकनीकी शक्तियां अभी तक इस बीमारी की रोकथाम में असफल हो गई हैं। प्रकृति के सामने हम बेबस खड़े नज़र आते हैं। प्राकृतिक आपदाएं जैसे कहीं बाढ़, कहीं सूखा प्राकृतिक असंतुलन से उत्पन्न होती हैं। ऋतुओं में निरंतर हो रही अनियमितता का कारण भी जनसंख्या वृद्धि से ही जुड़ा है। रहने योग्य जमीन जंगलों को हटाकर प्राप्त की जाती है। पेड़ों की अनावश्यक कटाई से यह समस्या उत्पन्न होती है। बढ़ती जनसंख्या की जरूरतें पूरी करने के लिए ही पेड़ों को अनावश्यक रूप से काट दिया जाता है। प्राकृतिक स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग ही भूमि के नीचे घटते जलस्तर का कारण है। जल की कमी आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती होने वाली है। आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध जल शायद ही प्राप्त हो।

जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ मोटर वाहनों के बढ़ते उपयोग से वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। बड़े शहरों में लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। सांस की बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। शुद्ध हवा में सांस लेने को लोग तरस गए हैं। कोरोना जैसी महामारी के समय लॉकडाउन के चलते कुछ महीने वातावरण शुद्ध रहा। प्रदूषण का स्तर कम देखा गया। इससे यही साबित होता है कि सभी समस्याओं का एक ही समाधान है, जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण। और वह तब तक संभव नहीं होगा जब तक हम जागरूक नहीं होंगे। जन जागरूकता सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से बेहतर परिणाम दे सकती है। मानसिक परिपक्वता भी आवश्यक है। अपने वंश परंपरा से ऊपर उठकर देश को देखना होगा। हर नागरिक को देश के विकास को अपना लक्ष्य बनना पड़ेगा। आजादी के बाद से ही जनसंख्या वृद्धि एक बड़ी समस्या रही है परन्तु कभी भी पार्टी का चुनावी मुद्दा नहीं बनी। मुद्दे वही होते हैं जो समय के साथ साथ खुद ही अस्तित्व विहीन हो जाते हैं। अगले चुनाव तक लोग भूल जाते हैं। सारी समस्याओं का मूल कारण यही है।  बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती असंवेदनशीलता, घटती सहनशीलता कभी प्रगति का द्वार नहीं खोल सकती। ये तीनों ही शब्द विरोधा भास प्रदर्शित करते हैं। हमें परस्पर संगठित होना है। दृढ़ निश्चय से, आत्मबल से, आत्मचेतना से इस समस्या का समाधान निकालना है। समाधान भी ऐसा जिसे सरलता से अपनाया जा सके। जनसंख्या कम हो परन्तु सभी मनुष्यों में घनिष्ठता अधिक हो। किसी ने सच ही कहा है –

“यहां रोज़ रोज़ जनसंख्या बढ़ती जा रही है। और इंसान अकेला होता जा रहा है।”

 

 

©अर्चना त्यागी, जोधपुर                                                  

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