लेखक की कलम से

अवकाश …

 

न चाहूं मैं कोई अवकाश,

कर्तव्य राह दिखाते रहना।

मेरे प्रियतम,मेरे ईश्वर,

भटकन न आने देना।

आयी मैं एक यात्रा पर,

वसुधा को सजाने को,

कैसा अवकाश कर्तव्य राह पर,

खुद को भूल जाने को।

पा जाऊँ मैं अपने पथ को,

विश्वास बस देते जाना,

मेरे प्रियतम ,ईश्वर मेरे,

भटकन न आने देना,

स्वनिर्माण नित कर मैं,

बस तुझको पा जाऊंगी,

लिया अवकाश जो मैंने,

पथ से भटक जाऊंगी,

नित रहती संग मैं तेरे,

प्रेम ,करुणा उपजाकर मैं,

तुझमे ही रम जाती मैं,

करुणावान बन कर मैं,

यात्रा ये बहुत है छोटी,

बहुत कुछ मुझे पाना है,

अवकाश के आकर्षण से,

मुझे खुद को बचाना है।

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी            

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