लेखक की कलम से

स्त्री तो सदियों से परीक्षा दे रहीं हैं…

बोधकथा

सीता के प्रति राम के रूखे व्यवहार के कुछ सन्दर्भ वाल्मीकि रामायण में मिलते हैं। वाल्मीकि का संदर्भ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रामकथा का प्राचीनतम व्यवस्थित रूप है।

ख़ास बात ये है कि वाल्मीकि की स्त्रियाँ प्रतिवाद नहीं करती हैं। प्रतिवाद तो दूर की बात है वे प्रायः चुप रहती हैं। बोलती तक नहीं हैं। सीता भी उनमें से एक हैं। लोक से जरूर हमें सीता के द्वारा प्रतिवाद दर्ज करने के कुछ उदाहरण मिलते हैं। मैथिली लोक गीत इस मायने में ख़ास हैं।

कुछ अवधी-भोजपुरी गीत भी इस कड़ी में जुड़ते हैं। इनके अलावा फल्गु नदी से जुड़े किस्से में भी सीता की नाराज़गी का जिक्र है। दशरथ की मृत्यु के बाद राम,सीता और लक्ष्मण उनका श्राद्ध करने गया ठाकुरबाड़ा जाते हैं।

श्राद्ध के साजो-सामान की व्यवस्था में राम को कुछ अधिक समय लग जाता है। महूर्त निकल जाने की आशंका में पंडित के कहने पर सीता नदी किनारे की बालू के पिण्ड बना कर दान संपन्न करती हैं। लौटने पर जब राम को पूरे वाकये की जानकारी मिलती है तो आदतन वह तस्दीक करना चाहते हैं कि सीता की बात में सच्चाई है या नहीं। वह नदी, गाय और ब्राह्मण से गवाही माँगते हैं। पर तीनों ही मुकर जाते हैं। उनके झूठ पर कुपित हो सीता श्राप दे बैठती हैं।

विप्र को अकिंचनता का, गाय को मैला खाने का और नदी को सूख जाने का। ब्राह्मण से वह कहती है कि दान-दक्षिणा से वह चाहे कितना ही कमा ले लेकिन उसे कभी पूरा न पड़ेगा। वह हमेशा दरिद्र ही बना रहेगा। गाय को पीछे से पूजे जाने (गोदान) और आगे से मैला खाने के लिए श्रापती हैं। फल्गु नदी को पानी से महरूम करती हैं। कहते हैं इसी वजह से फल्गु नदी की सतह सूखी दिखती है। पानी बालू के नीचे एक फुट गहरायी में बहता है। लोक की इस कथा से ध्वनित होता है सीता (स्त्री) की परीक्षाएं अनगिनत थीं।

©संकलन – संदीप चोपड़े, सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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