लेखक की कलम से

मैं हिंदी हूँ …

 

मैं आपकी ही हूँ आपकी पहचान हिन्दी हूं

थोड़ी घबराई हुई और डरी डरी सी हूं।

अपने अस्तित्व के खो जाने के डर से विचलित हूं

कहीं मैं भी सिर्फ किताबों के शब्द मात्र ही न रह जाऊं

भाषा बनकर ही ना रह जाऊं पहचान न खो दूँ

संस्कृत भाषा की तरह बस विषय मात्र न रह जाऊँ

स्कूलों में सिर्फ ना पढ़ाई जाऊं समझाई भी जाऊँ

जिस तरह से अंग्रेज़ी को भाव दिया जा रहा है,

हिंदी बोलने पर अपमानित महसूस किया जा रहा है।

मुझे बोलने में लोग शरमाते हैं,आज अपने ही

अंग्रेजी को मेरे सामने पाते हैं तो अपने को छोटा मानते हैं

अंग्रेज़ी बोलने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं,न जाने क्यो

और मुझे बोलने पर शर्मिंदगी!मानते हैं अपने ही देशवासी

 

मैं राष्ट्रभाषा आपकी अपनी ही हिन्दी हूं,

मैं जन -जन  की भाषा हूं पर फिर भी आज दुखी हूँ

मैं खुशी बयां करने की जरिया हूं,क्यो ये भूल रहे हो

किसी के दर्द में आंखों से निकली दरिया हूं याद क्यो नही

मैं वही हिंदी हूं जिसके ऊपर विदेशो में पहचान अलग है

जो अग्रेजों के खिलाफ,लड़ी मैं वही हिंदी हूँ

लड़ी आजादी की लड़ाई भी झेली मैने वही हिंदी हूँ

आजाद हो अंग्रेजों से,पर मुझ से क्यो आजादी चाहते हो

अंग्रेजी न कर पाई मेरी बेज्जती पर अपने ही उतारू हैं

ना सस्ती हो अंग्रेज़ी की पढ़ाई कभी तो भी

अमीरों की ना सही रहूं पर गरीबो की सदा रहूँगी

गरीबों की भाषा बनकर तो रहूंगी कहीं बस यही उम्मीद

वरना खो ना दूं अपना  अस्तित्व कहीं डर यही बना हुआ

ना खो देना कहीं मुझे झूठे अभिमान में तुम मेरे अपने ही

जिंदा रखना हमेशा मुझे अपने स्वाभिमान में तुम

मैं हिंदुस्तान की पहचान हिंदी हूं,आपकी शान हिंदी हूँ

मैं हिंदुस्तान की आवाज़ हिंदी हूं सब के दिलो की रानी हूँ

मैं राष्ट्र की माता हिंदी हूं,तुम सब की पहचान हिन्दी हूँ

मैं राष्ट्र का धरोहर हिंदी हूं तुम्हारी मातृभाषा हिंदी हूँ

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                             

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