लेखक की कलम से

हां मैं सुन्दर हूँ…….

हाँ मैं सुन्दर हूँ..
और सुन्दर दिखना भी चाहती हूँ…
आदिम मानवीय आकांक्षा है यह..
सदैव से इसके अंकुर उगते रहे हैं..
मैं भी भिन्न कैसे हो सकती हूँ..?
खुद को सजाती हूँ, संवारती हूँ..
जतन करके निखारती हूँ..

अपनी मर्जी के कपडे पहनना चाहती हूँ..
अपनी मर्जी के रंगों को चुनना चाहती हूँ..
और जब मैं ये करती हूँ
तो इसका मतलब ये तो नहीं हुआ कि
तुम्हे हक़ मिल गया..
मुझे लोलुपता से घूरने का..
मुझपर भद्दी टिप्पणियां करने का..
मेरा चरित्र निर्धारण करने का..
मेरे जीवन में घुसपैठ करने का..

मेरी होठों पर हंसी..
तुम्हारे लिए कोई आमंत्रण नहीं है..
मेरा सुन्दर दिखना..
तुम्हारे लिए कोई आमंत्रण नहीं है..
ये बस मेरे जीवन जीने का तरीका है..
मेरी खुशियों का एक बहाना है..
सबकी तरह मुझे भी खुश रहने का अधिकार है।
पर उससे तुम्हे भला क्या ऐतराज है??

और किंचित सा प्रश्न है मेरा तुमसे….
गर गैरत हो तो जवाब सोचना अवश्य..
देने का तो बूता तुममें हो नहीं सकता..
…मेरा बनाव, श्रृंगार और कपडे..
क्या मेरे अच्छे दिखने का यही पैमाना है??
मेरा आत्मविश्वास.. मेरे गुण.. मेरी अच्छाइयाँ..
सब उन कपड़ों और श्रृंगार के
नीचे छुप जाते हैं क्या?
तुम्हें दिखते नहीं क्या?
या यूँ समझ लूँ कि..
तुम बस वही देखते हो..
जो देखना चाहती हैं तुम्हारी नजरें??

हाँ मैं सुन्दर हूँ..
और सुन्दर होना कोई गुनाह तो नहीं है..
फिर क्यों इसका खामियाजा
भुगतना पड़ता है मुझी को ??

हाँ मैं सुंदर हूँ..
क्योकि मैं खुद के लिए भी सुन्दर दिखना चाहती हूँ
और मैं सुन्दर दिखना चाहती हूँ अंदर से भी..।

©भारती शर्मा, मथुरा उत्तरप्रदेश

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