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पद्मश्री सुधा मूर्ति जब पहुंची कौन बनेगा करोड़पति के अंतिम एपीसोड में…

29 नवंबर 19 को कौन बनेगा करोड़पति पर पद्मश्री सुधा मूर्ति आई थीं वे इंफोसिस के निर्माता नारायण मूर्ति की पत्नी हैं। श्रीमती मूर्ति को देख-सुनकर आप उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। स्वयं अमिताभ बच्चन जो करोड़ों लोगों के प्रेरणास्त्रोत हैं, वे भी उनसे अभिभूत नज़र आये।

70 के दशक में सुधा मूर्ति ने IIT से इंजीनियरिंग की, यह उस समय कितना कठिन था इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता था कि उनके कॉलेज में 599 लड़कों के साथ वे अकेली लड़की थीं। उनके कॉलेज में महिला शौचालय ही नहीं था, क्योंकि इससे पहले इसकी आवश्यकता ही नहीं थी। इस कठिनाई का सामना करने के बाद उन्होंने बड़ी संख्या में महिला शौचालय भी बनवाये हैं।

70 के दशक में टाटा समूह ने इंजीनियर पद का विज्ञापन प्रकाशित किया, जिसमें यह शर्त अंकित थी कि लड़कियां इस पद हेतु आवेदन न करे। इस शर्त से आहत होकर सुधा ने टाटा समूह के मुखिया जेआरडी टाटा को एक पत्र लिखा कि “आप लड़कों और लड़कियों में भेद कर रहे हैं, जबकि लड़कियां पढ़ाई में लड़कों से कहीं ज्यादा संजीदा होती हैं।” सुधा ने यह काबिलेतारीफ काम तो किया किन्तु उससे भी बड़ा काम जेआरडी टाटा ने किया, जब उन्हें यह पत्र मिला तो उन्होंने प्रबंधन को तलब किया और तत्काल विज्ञापन से वह शर्त हटाकर सुधा मूर्ति को साक्षात्कार हेतु बुलवाया। जैसी उम्मीद थी सुधा चयनित भी हुईं और टाटा समूह में प्रथम महिला इंजीनियर के रूप में सेवा देने वाली प्रेरणा बनीं।

उनके पति नारायण मूर्ति ने जब इंफोसिस नामक कंपनी की स्थापना की तो उन्हें सपोर्ट करने के लिये सुधा को नौकरी छोड़नी पड़ी। नौकरी छोड़कर जाते हुए आख़री मुलाकात में जेआरडी टाटा ने उनसे कहा कि जब बहुत पैसे कमा लेना तो यह याद रखना की यह समाज का पैसा होता है, जिसे हमें किसी न किसी रूप में समाज को लौटाना होता है। कालांतर में जब इंफोसिस बड़ा नाम हो गया, तो सुधा ने टाटा साहब की उस सीख को क्रियान्वित किया। आज वे सैकड़ों देवदासियों और उनके हजारों बच्चों को नारकीय जीवन से बाहर निकालकर आत्मसम्मान से जीने लायक और शिक्षित बना रहीं हैं, अनेकों विद्यालय संचालित कर रहीं हैं, शौचालय निर्माण कर रहीं हैं और अपने ऊर्जावान लेखन से करोड़ों महिलाओं के लिये प्रेरणा बनी हुईं हैं। लगभग 71 वर्ष की आयु में उनकी ऊर्जा किसी को भी अपना मुरीद बनाने के लिये काफी है।

श्रीमती सुधा का रहन-सहन इतना सादा है कि उन जैसा बनने को बरबस जी चाहता है। जब अमिताभ ने नारायण मूर्ति की सफलता का श्रेय सुधा को दिया तो उन्होंने सहजता से कहा कि वे लो मेंटेनेंस वाइफ हैं, इसलिये पैसे बचते होंगे। सुधा ने कहा कि वे कोई मेकअप नहीं करतीं, गहने नहीं पहनतीं और साधारण वस्त्र पहनतीं हैं।

आज जब पुरुष प्रताड़ित समाज में हम देश की एक बिटिया डॉ. प्रियंका रेड्डी से शर्मिंदा हैं, सुधा और कल का KBC जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही महिलाएं ही दर्शक के रूप में मौजूद थीं, गर्व की अनुभूति कराती हैं।

जिस दुनिया को पुरुष अपनी दुनिया मानकर तरह-तरह के अत्याचार थोप रहा है, वास्तव में वह दुनिया स्त्रियों द्वारा ही खूबसूरत बनाई हुई दुनिया है, उनके बिना सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अखिल ब्रम्हाण्ड में जो भी सत्यम-शिवम-सुंदरम है, उसके पीछे इस आधी अच्छी दुनिया का ही योगदान है। 

@अनिल तिवारी

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