लेखक की कलम से

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का स्वागत …

हिंदी को नमन

किसी की याद में आंसू का बहाना लाजमी है कितना,
मनुज-मनुज का रिस्ता यहां दवामी है कितना।
है प्यार कितना दिलों में एक दूसरे की खातिर,
क्या बताना कि एक दूसरे की नजरों में गिरामी है कितना।
किसी की याद में आंसू बहाना लाजमी है कितना!


लाजमी- जरुरी, मुनासिब
दवामी-चिरस्थायी
गिरामी-महान, पूज्य, पुनीत

 

 

    ©लता प्रासर, पटना, बिहार       

 

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