लेखक की कलम से
कठिन दौर …
ग़ज़ल
हटा तल्खी रिवायत से कभी तो ।
हमें देखो इनायत से कभी तो।
करो दूरी शिकायत से कभी तो।
सनम दो रब्त कुर्बत से कभी तो।
सितम करके थकी तो जिंदगी सुन
निजातें दे मुसीबत से कभी तो।
न ऐसा तो गुनाह कोई किया था,
करो परहेज अज़ीयत से कभी तो।
ग़मों अपना करो रुख और दूजे,
खुशी आये शराफत से कभी तो।
कठिन इस दौर में जालिम वबा के,
भरी सुब्हा नजाकत से कभी तो।
उतारो ख़ाब का बोझा पलक से,
करो नाता हकीकत से कभी तो।
©ललिता गहलोत, सूरत