लेखक की कलम से
जिंदगी यही है ….
एक संगीत
एक ताल
एक लय
एक थिरकन
कंदील झंझावात से
मन को हटा
थोड़ा हंस लिया
कभी गा लिया
कभी अच्छा सा
कुछ सोच लिया
क्योंकि;
जीवन अपने प्रवाह में
सतत प्रवाहित है
उसे रत्तीभर फर्क नहीं पड़ता है
हमारे मन के देहरी के
उलझे झंझावात का
हम निरंतर बहते रहते हैं
किंतु इसका थाह असंभव बस
एक जिजीविषा
एक गूंज
हमारे अंतर मे
जिंदगी के प्रति होना चाहिए
तभी विषमता से
सामंजस्य बिठाया जा सकता है
प्रतिकूलता में अनुकूलता लाया
जा सकता है
घुप्प अंधकार में
जगमग ज्योर्ति की कामना होती है, क्योंकि ये जिंदगी है
हाथ पर हाथ धरे नहीं जिया जाता
एक किरण
एक रश्मि
सतत घोर तमस में भी
कल्पना की जाती है
क्योंकि,
जिंदगी यही है।
©सुप्रसन्ना झा, जोधपुर, राजस्थान