लेखक की कलम से

और थोड़ी ही दूर में सुबह है

सुगंधित फूल, सजावटी पत्ते
हरियाली सुबह
सुनहरे धान पर ओस की बूंदें

जुगनू से सजि हुई रात
आम और कटहल के जंगलों में चाँदनी की लुकाछिपी
तारों का एक जुलूस आसमान से नीचे उतर आया
सब कुछ ठीक है
ठीक है सब कुछ…

सिर्फ़ लोगों के घरों में अंधेरा छाया हुआ है
पूरे आसमान में फुसफुसाने की आवाज़
आँसुओं से गीली हवा
अमंगलकारी सायरन बज रहा है
सब लोग दौड़ रहे हैं
दौड़ रहे हैं सब लोग…

कहाँ जाना है? क्या आपको पता मालूम है?

पते की तलाश में
दोनों हाथों से कफ़न हटाते हुए
सड़कें बना रहे हैं हम
और डर नहीं
और थोड़ा सा चलते ही मिल जाएगी सुबह,
चमकता हुआ सुनहरा धूप …

©मनीषा कर बागची

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