कोरबा

शासन को करोड़ों रूपयों का चूना लगाकर जिले के राईस मिलर्स कर रहे हैं धोखाधड़ी

कोरबा (गेंदलाल शुक्ल) । जिले में कस्टम मीलिंग करने वाले अनेक राईस मिल संचालक लम्बे समय से राज्य शासन से धोखाधड़ी करते आ रहे हैं और शासन को करोड़ों रूपयों का चूना लगा चुके हैं। वर्तमान वित्त वर्ष में भी आईपीसी की दण्डात्मक धाराओं, धोखाधड़ी, कूट रचना और आर्थिक अपराध की श्रेणी में आने वाली यह कारगुजारी पूर्ववत जारी है। इस धोखाधड़ी में उद्योग विभाग और खाद्य विभाग की भूमिका भी संदिग्ध है।

इस संबंध में उपलब्ध दस्तावेजों के अध्ययन से करोड़ों रूपयों की इस धोखाधड़ी और आर्थिक घोटाला का खुलासा हुआ है। जिले के उद्योग विभाग में सत्तर से अधिक राईस मिल का विवरण दर्ज है। उद्योग विभाग ने सभी राईस मिल का मीलिंग क्षमता का भौतिक सत्यापन कर प्रमाण पत्र जारी किया है। लेकिन राईस मिल संचालकों ने अपने मिल की वास्तविक उत्पादन क्षमता को छिपाकर कस्टम मीलिंग के लिए खाद्य विभाग में साल दर साल पंजीयन कराया है और शासन की आंख में धूल झोंक कर करोड़ों रूपयों के प्रोत्साहन राशि और बोनस का लाभ लिया है। वर्तमान वर्ष में भी अनेक राईस मिल संचालकों ने अधिक क्षमता के मिल का पंजीयन कम क्षमता में कराया है और शासन को प्रोत्साहन और बोनस राशि के रूप में करोड़ों रूपयों की चपत लगाने में जुटे हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के समय प्रतिवर्ष राज्य शासन के खाद्य विभाग में कस्टम मीलिंग के लिए पंजीयन और अनुबंध होता है। खाद्य विभाग को राईस मिल की क्षमता का सत्यापन का अनुबंध कराना होता है लेकिन लगता है कि खाद्य विभाग दफ्तर में बैठे-बैठे और उद्योग विभाग से जारी क्षमता प्रमाण पत्र के बिना ही अनुबंध कर लेता है। कुल मिलाकर खाद्य विभाग की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है।

याद रहे कि राईस मिल से दो माह का कस्टम मीलिंग अनुबंध होता है। मिल संचालकों को प्रति टन क्षमता पर एक माह में चार हजार क्विंटल धान की मीलिंग करना अनिवार्य है। इससे कम मीलिंग करने पर उन्हें दस रूपये क्विंटल मीलिंग चार्ज मिलेगा लेकिन चार हजार क्विंटल प्रति टन क्षमता से पूरी मीलिंग करने पर मीलिंग चार्ज के अतिरिक्त पैंतीस रूपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि मिलेगी और क्षमता से अधिक मीलिंग करने पर दस रूपये प्रति क्विंटल बोनस भी दिया जायेगा।

कहना न होगा कि प्रोत्साहन और बोनस राशि का लाभ लेने के लिए ही राईस मिल संचालक के ज्यादा क्षमता के मिल का खाद्य विभाग में कम क्षमता में पंजीयन कराते है। इस तरह योजना पूर्वक शासन को प्रतिवर्ष करोड़ों रूपयों का चूना लगाया जा रहा है।

इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम मल्लिक का कहना है कि राईस मिल संचालकों का यह कृत्य आपीसी की धारा 467, 468, 420, 120 बी और आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। शासन को इस मामले की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) से कराना चाहिये और शासन को पहुंच रही करोड़ों रूपयों की क्षति पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाना चाहिये।

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