लेखक की कलम से

रामगाथा …

 

अभी #दशहरा बीता ! काफी कुछ पतित रावण के समर्थन में लिखा गया। जो इस कलियुग की व्यथा है। पर #राम को समझना आसान नहीं। क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम सब नहीं बन सकते। इसीलिए ईश्वर कहलाए। श्रीराम वास्तव में अपेक्षा, लोभ, स्वार्थ, काम, क्रोध, सांसारिक मोह से परे कर्तव्य और मर्यादा से बंधे पुरुषोत्तम है। श्रीराम की गाथा मानव के ‘मानव’ बनने का इतिहास है।

 

 

राम !

 

आपकी गाथा,

आपकी पताका,

आपका शौर्य,

आपका मान,

हमारा अभिमान

आपका सम्मान

हमारा मान

आपकी मर्यादा

हमारा अभिमान

भारत की शान

 

श्री राम

आपकी गाथा किताबों से परे

हमारे संस्कार-संस्कृति से बंधे है।

 

श्रीराम

आप हमारे भावों से

आत्मा से

कैसे विलुप्त हो गए?

क्या आपका विलुप्त होना

भारतीयता का

संस्कार का

हमारी संस्कृति का

मर्यादा का

विरूपित होना?

नष्ट होना ?

विलुप्ति

कमजोर होना

 

राम आप तो चक्रवर्ती सम्राट थे।

आपने दशानन को विजित किया

वहीं दशानन जो दुर्दम्य था

पर अहंकारी था

लोग कहते है

आपने दशानन का वध किया

पर मुझे लगता है आपने

उसके अहंकार का

शमन किया!

 

इस कलियुग में आपके एक और अवतार की

आवश्यकता है प्रभु!

क्योंकि आपके पुत्र अपनी मूल प्रकृति को भूल चुके है!

 

 

चित्र स्रोत बाली, इंडोनेशिया

प्रसंग – मारीच वध

साभार- श्री कोडो गरोंग


©डॉ साकेत सहाय, नई दिल्ली

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