लेखक की कलम से

डर…

(लघुकथा)

– रूही, क्या हुआ बच्चा कितनी परेशान क्यों हो?

– माँ, देखो खून, देखो न… माँ। कितना खून बह रहा है। माँ, कसम से मैंने किसी से लड़ाई भी नहीं की। भईया ने मारा भी नहीं। देखो न पेंटी भीग गई। बेड भी गंदा हो गया, माँ। पेपर भी रखा तब भी। पर, आप मारोगे तो नहीं न, माँ। प्लीज, दादी को नहीं बताना। वो मेरी ही गल्ती बोलेगी। भूखा रखेगी। माँ, सुनो न।

– ओह! भगवान मेरी बच्ची को इतनी जल्दी, ये दुख भी देना था। अब इस अबोध को क्या बताऊँ। कैसे समझाऊँ? अब ये दर्द, ये दुख, इसे हर माह झेलना पड़ेगा। इसके कम दिमाग होने का कोई फायदा न उठा ले।

– ओ माँ, तुम क्यों रो रही हो? देखो मैंने तो सबके सामने हल्ला नहीं मचाया। सब के जाने के बाद तुमको बताया। चुपचाप बैठी थी न, मैं? अब कैसे करूँ, माँ बताओ न?

– रुही, चुप हो जाओ मेरी बच्ची। अब तुमको ये परेशानी तो हर माह आयेगी। बेटी इस समय तुमको रेस्ट करना है और शांत हो कर पेंटिंग बनाना है।

– अच्छा तो माँ, आप समान ला दोगे, पेंटिंग का। बताओ तो? तब तो ये अच्छा है माँ, डाक्टर अंटी से दवा ला दो न। पर करेंट बाले डाक्टर के पास नहीं ले जाना पक्का प्रॉमिस करो।

– हाँ, मेरी बच्ची।

– देखो, मुझे दुख भी रहा है, माँ।

– हाँ बेटा, हम दोनों आज से अच्छे बाले दोस्त हैं न। आप सब बात हमसे बस शेयर करोगे और किसी से नहीं। पक्का प्रॉमिस करो आप।

– ओके माँ, आप मुझे भईया से ज्यादा प्यार करते हो न पहले बताओ?

– हाँ बेटा, सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ। मगर अब आपको कहीं भी जाना हो और कोई भी कुछ कहे तो हमें बताना पड़ेगा नहीं तो प्राबलम हो जायेगी।

अब हम लोग रोज रुम में ही खेला करेगें तूम अब भईया के दोस्तों से लड़ाई न करना ठीक है।

– हाँ माँ, अभी न, कल जोर से मुझे पींच किया और कह रहा था तुम कितनी मोटी होती जा रही हो

– ओह मेरी बच्ची, आ तुझे सब की नजरों से छूपा लूँ।

– अरे माँ, मूझे हसीं आ रही है। तुम भी न, अब मैं बच्ची थोडी़ न हूँ।

– हाँ मेरी बेटी, तू अब बड़ी हो गई, यही तो डर है।

 

 ऋचा यादव,  बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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