छत्तीसगढ़

नक्सलियों ने साय सरकार को ठहराया लिप्सा की मौत जिम्मेदार

बीजापुर.

बीजापुर के चिंताकोंटा स्थित आवापल्ली पोटाकेबिन में पांच मार्च को आगजनी की घटना हुई थी। मामले को लेकर नक्सलियों के पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी के सचिव मोहन ने प्रेसनोट जारी किया है। प्रेसनोट में घटना के लिए राज्य की विष्णुदेव सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। जारी प्रेसनोट में नक्सली नेता मोहन ने पोटाकेबिन आगजनी में मासूम लिप्सा उईका की मौत को दर्दनाक बताते हुए मामले की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की है।

नक्सली नेता ने कहा है कि 19 वर्षों से पक्के भवन की बजाय बांस के भवन में छात्रावास का संचालन किया जा रहा है। वहीं, प्रेसनोट में गंगालूर पोटाकेबिन में व्याप्त समस्याओं पर छात्रों की रैली को लेकर प्रशासन पर नजरअंदाज करने सहित सुविधाओं व शिक्षकों की कमी का आरोप भी लगाया है। इसके साथ ही नक्सली नेता ने बांस के बजाय पक्के भवन की मांग की है। गौरतलब है कि 5 मार्च की रात 1 बजे आवापल्ली पोटाकेबिन में भीषण आग लगने से वहां सो रही एक साढ़े चार साल की अबोध बच्ची लिप्सा उईका की जलने से मौत हो गई थी। साथ ही पोटाकेबिन भी पूरी तरह से जलकर राख हो गया था। खबर के मुताबिक पोटाकेबिन में रखा बच्चों का एक महीने का राशन, ओढ़ने-बिछाने के कपड़े व अन्य सामान पूरी तरह जल गए थे।

सर्व आदिवासी समाज ने लिया जायजा
गुरुवार को सर्व आदिवासी समाज के वरिष्ठ सदस्य तेलम बोरैया के नेतृत्व में दस सदस्यीय दल आवापल्ली पहुंच कर मौके का जायजा लिया। सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष जग्गू राम तेलामी ने बताया कि 20 साल पुराने बांस के बने आवासीय विद्यालय में व्यवस्था के नाम पर कुछ भी नही है। छात्रों और अनुदेशकों से चर्चा में पता चला कि यहां 350 बच्चों की दर्ज संख्या है, जिनमे बुधवार की शाम भोजन से पूर्व की गई गिनती में 303 छात्राएं मौजूद थे।

पोटाकेबिन में पढ़ना चाहती थी लिप्सा
मृत मासूम लिप्सा उईका अपनी बुआ जोकि कक्षा 9वीं की छात्रा है के यहां आई थी। वह अपना यहां एडमिशन करवाना चाहती थी, लेकिन उम्र कम होने के चलते उसका यहां प्रवेश नहीं मिल सका था। सोमवार को उसके पिता आयतू उइका लेने आए थे, लेकिन उसने जाने से मना कर दिया था। आयतु उईका गुरुवार बाजार के दिन उसे लेने आने वाले थे, लेकिन बुधवार रात की घटना में उसकी मौत हो गई।

चौकीदार नहीं था मौजूद
जग्गूराम तेलामी ने बताया कि जांच दल ने पाया की छात्रवास अधीक्षिका आग लगने की घटना के दौरान पोटाकेबिन में मौजूद नहीं थी। कमरों में एक बिस्तर पर दो से तीन छात्राएं सोया करती थी। कमरे में रात में रहने वाली चौकीदार भी वहां मौजूद नहीं थे। ग्यारह नंबर कमरे की छात्रा की रात को अचानक नींद खुलने से उसने सभी को जगाया था और सभी को सूचना दी गई। कमरा नंबर दस में जिसमें बच्ची की जलने से मौत हुई उसमे एक दरवाजे में बाहर से ताला लगा हुआ था। जिसका कारण सिटकनी का महीनों से खराब होने की बात अधीक्षिका गीता मोड़ियाम ने स्वीकार किया। घटना पर वहां के कर्मचारियों, छात्राओं और अधीक्षिका के वक्तव्य अलग-अलग हैं।

शिक्षा के नाम पर अधिकारी काट रहे चांदी
जग्गूराम तेलामी ने कहा कि आदिवासी बच्चों की शिक्षा के नाम पर सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारी चांदी काट रहे हैं। पोटाकेबिन आवासीय विद्यालयों में न गुणवत्ता पूर्ण आवासीय व्यवस्था है और न ही गुणवत्ता पूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था है। 2009 के बाद से यहां के रहवासी छात्रों के लिए विषय के विद्वान शिक्षकों की न पदस्थापना की गई और न ही पद स्वीकृत किए गए हैं। प्रबंधकीय व्यवस्था के लिए प्रतिनियुक्ति पर शिक्षकों को और अध्यापन के लिए गैर प्रशिक्षित अनुदेशक की अस्थाई भर्ती की गई है।

50 लाख मुआवजा और सरकारी नौकरी की मांग
हमारी मांग है की आवापल्ली घटना की न्यायिक जांच हो और जिम्मेदारों पर अपराधिक मुकदमा दर्ज हो। मृत मासूम के परिजनों को 50 लाख मुआवजा और परिवार के एक को सरकारी नौकरी दिया जाए। आदिवासी क्षेत्र के सभी आवासीय विद्यालय पक्के मकानों में शिफ्ट किया जाए। पोर्टा केबिन स्कूलों में प्रशिक्षित और विषय विद्वान शिक्षकों की भर्ती की जाए। आवासीय विद्यालयों की भोजन और शैक्षणिक गुणवत्ता की जांच के लिए समय समय पर स्वतंत्र टीम से जांच कराई जाए, जिसमें उसी विद्यालय के छात्रों के पालक भी शामिल हों।

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