पिछले तीन महीनों में भारत में राजनीतिक विज्ञापन खर्च किये 102.7 करोड़ रुपये
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राजनीतिक दलों ने डिजिटल कैंपेन सहित जनता तक बड़े पैमाने पर पहुंच की कोशिशें तेज कर दी हैं. मेटा और गूगल का अनुमान है कि पिछले तीन महीनों में भारत में राजनीतिक विज्ञापन खर्च 102.7 करोड़ रुपये के करीब है. तकनीकी दिग्गजों द्वारा जारी आंकड़ों के एनालिसिस से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 5 दिसंबर से 3 मार्च के बीच ऑनलाइन विज्ञापनों पर 37 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए, यह आंकड़ा उसकी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस से 300 गुना ज्यादा है.
ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम के एनालिसिस के मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और इसकी कई इकाइयों द्वारा ऑनलाइन कंटेंट प्रमोशन पर खर्च केवल 12.2 लाख रुपये था.
इस दौरान Google और Meta प्लेटफॉर्म पर अपने कुल ऑनलाइन विज्ञापन खर्च में से, कांग्रेस ने अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के फेसबुक पोस्ट को बढ़ावा देने के लिए 5.7 लाख रुपये खर्च किए, जो मौजूदा वक्त में अपनी 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के जरिए हिंदुस्तान का दौरा कर रहे हैं.
अन्य पार्टियों की क्या स्थिति है?
आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 4 करोड़ रुपये के साथ भारत की राजनीतिक विज्ञापन खर्च लिस्ट में दूसरे पायदान पर है. इसके बाद ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD) ने 51 लाख रुपये, वाईएसआर-प्रतिद्वंद्वी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने 39.5 लाख रुपये और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 27 लाख रूपये खर्च किए हैं. YSRCP के हिस्से में उसकी ओर से इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) द्वारा खरीदे गए विज्ञापन शामिल हैं.
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बिहार-केंद्रित जन सुराज पार्टी ने तेलुगु भाषा में कुछ यूट्यूब वीडियोज को बढ़ावा देने के लिए 2.5 लाख रुपये खर्च किए, जबकि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 250 रुपये का निवेश किया.
आंकड़ों से पता चलता है कि समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिवसेना गुटों जैसी कई क्षेत्रीय पार्टियों ने ऑनलाइन विज्ञापनों पर खर्च नहीं करने का विकल्प चुना है.
आम आदमी पार्टी (AAP) गूगल पर एक विज्ञापनदाता के रूप में रजिस्टर्ड है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने इस अवधि के दौरान पार्टी की तरफ से कोई पैसा खर्च नहीं किया है. हालांकि यह मेटा के साथ रजिस्टर्ड नहीं है. यह व्यवहार उस पार्टी के लिए असामान्य लगता है, जिसका डिजिटल डॉमिनेंस बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर माना जाता है.
हालांकि, राजनीतिक समूह अक्सर सार्वजनिक जांच से बचने के लिए अन्य कमर्शियल या सामाजिक संगठनों के जरिए विज्ञापन दोबारा भेजते हैं.
बता दें कि 12.3 लाख रुपये के साथ, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य कार्तिकेय शर्मा राजनीतिक नेताओं द्वारा व्यक्तिगत विज्ञापन खर्च के मामले में टॉप पर हैं.
विज्ञापन देने वालों के अपारदर्शी नेटवर्क
डेटासेट से पता चलता है कि शैडो नेटवर्क्स बीजेपी, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और बीजेडी सहित कई पार्टियों के समर्थन में खासकर मेटा पर पेड पॉलिटिकल कैंपेन चला रहे हैं.
Meta Ad Library रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम सात बीजेपी समर्थक पेजों ने पार्टी की पहल और एजेंडे को बढ़ावा देने और विपक्षी हस्तियों का उपहास करने वाले पोस्ट पर हाई रीच पाने के लिए कुल मिलाकर 5.7 करोड़ रुपये खर्च किए. 'उल्टा चश्मा' नाम की एक संस्था ने 3.2 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसके फेसबुक पेज पर उसका टारगेट "राजनीतिक विमर्श को एक ट्विस्ट के साथ आकार देना" बताया गया है. इसने MemeXpress, पॉलिटिकल X-Ray, तमिलकम और मालाबार सेंट्रल जैसे अन्य पेजों के विज्ञापनों को भी फंड दिया.
'उल्टा चश्मा' द्वारा 5 दिसंबर 2023 से 3 मार्च 2024 के बीच फेसबुक और इंस्टाग्राम विज्ञापनों पर खर्च किया गया पैसा.
डीएमके के लिए, पॉपुलस एम्पावरमेंट नेटवर्क (Populus Empowerment Network) और सिंपलसेंस एनालिटिक्स प्राइवेट लिमिटेड (Simplesense Analytics Private Limited) नाम की दो संस्थाओं ने पार्टी प्रमुख और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की प्रशंसा और पीएम नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले यूट्यूब वीडियो की पहुंच बढ़ाने के लिए गूगल को 86.6 लाख रुपये और 23.9 लाख रुपये ट्रांसफर किए.
इसी तरह, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर Jagane Kavali, Jagananna ki Thoduga, और Jagan: The Juggernaut जैसे पांच पेजों ने इस अवधि के दौरान वाईएसआरसीपी और उसके बॉस जगन मोहन रेड्डी के पक्ष में कंटेंट के प्रमोशन पर कुल मिलाकर 1.12 करोड़ रुपये खर्च किए.
बेंगलुरु स्थित 'जॉय ऑफ गिविंग ग्लोबल फाउंडेशन' नाम की इकाई ने यूट्यूब पर प्रशांत किशोर के भाषणों के वीडियो का विज्ञापन 9.5 लाख रुपये में किया.
ट्रोलिंग कैंपेन
कई पेजों ने खास पार्टियों और नेताओं को टार्गेट करने वाले पोस्ट के विज्ञापन के लिए लाखों रुपये खर्च किए. उदाहरण के लिए, फेसबुक पेज 'महाठगबंधन' और 'बदलेंगे सरकार, बदलेंगे बिहार', जिन्होंने जनवरी में अलग होने तक बिहार के जेडीयू-आरजेडी गठबंधन के खिलाफ अभियान चलाया. इन पेजों ने पिछले तीन महीनों में क्रमशः 14.4 लाख रुपये और 20 लाख रुपये खर्च किए.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जन-समर्थक छवि को चुनौती देने की मांग कर रहे 'निर्माता' नाम के एक अन्य पेज ने मेटा विज्ञापनों में 56.4 लाख रुपये का इन्वेस्ट किया.
ओडिशा पर एक नजर…
ओडिशा, भारत में राजनीतिक विज्ञापनों के तीन टॉप लक्ष्य समूहों में से एक है, जिसका कुल खर्च 8.8 करोड़ रुपये है. यह यूपी के बाद दूसरे स्थान पर है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में बीजेडी के शामिल होने की चर्चा के बीच, बीजेपी ने अकेले Google विज्ञापनों पर 2 करोड़ रुपये खर्च किए, जो कि यूपी में उसके विज्ञापन खर्च से 37 लाख रुपये कम है. पश्चिम बंगाल भी ऑनलाइन विज्ञापनों के टॉप तीन टार्गेट्स में से एक है.
अन्य पैटर्न में राजनीतिक विज्ञापन के लिए पसंदीदा मेटा प्लेटफॉर्म के रूप में इंस्टाग्राम का उभार है. 14 जनवरी से 28 फरवरी के बीच बीजेपी के 356 विज्ञापनों में से कम से कम 190 अकेले इंस्टाग्राम पर चले. दूसरी तरफ कांग्रेस ने 10 फरवरी से 3 मार्च के बीच 71 अभियानों का विज्ञापन किया. कुल विज्ञापनों में से, 38 कैंपेन इंस्टाग्राम पर चलाए गए, जबकि केवल तीन फेसबुक के लिए थे. अन्य दो साइट्स पर एक साथ चले.
भारत में, मेटा 'सामाजिक मुद्दों, चुनाव या राजनीति' से संबंधित प्रमोटेड कंटेंट पर 'राजनीतिक विज्ञापन' का लेबल लगाता है. गूगल के लिए, ऐसे विज्ञापन जो 'किसी राजनीतिक दल, राजनीतिक उम्मीदवार या लोकसभा या विधानसभा के मौजूदा सदस्य द्वारा चलाए जाते हैं' उनको राजनीतिक विज्ञापनों के रूप में कैटेगराइज किया जाता है.