लेखक की कलम से

क्या इसे ही कहते हैं….

अभिलाषायें मौन हों सारी ,
जब निकृष्ट जीवन हो भारी ।
तीव्र वेदनाओं का उद् गम ,
क्या इसे विरक्ति कहते हैं ।।

उत्पीड़ित सांसों से जब स्वर ,
अधरों पर मुखरित हो ईश्वर ।
अश्रु धार से होता संगम ,
क्या इसे ही भक्ति कहते हैं ।।

प्रत्यंचा पर स्वप्न चढ़े हो ,
सांध्य भोर जो रोज गढ़े हों।
कंपित स्वर पर निश्चल मन ,
क्या इसे ही शक्ति कहते हैं ।।

अंतस चुप शब्दों का सागर ,
शांत चित्त दृग बहते झर झर।
मूक समाधी हो जाए तन ,
क्या इसे अभिव्यक्ति कहते हैं ।।

©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद

 

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