लेखक की कलम से

जाया करते है ….

किस कदर लोग बातों को जाया करते हैं

मुझे शक है वह बात छुपाया करते हैं

कितनी बातें हैं दुनिया में छुपाने की

पता नहीं लोग मेरा वक्त क्यों जाया करते हैं

 

एक तकरार है मेरी इस खुदगर्ज जमाने से

यह बार-बार मुझको क्यों आजमाया करते हैं

करीब से जान कर भी अंजान बन रहे वो

सुना है वह मुझको मिलने पे पछतावा करते हैं

 

जंगल में आजकल कोई चिड़िया गाना नहीं गाती

सुना है पंछी उसके घर आया जाया करते हैं

छतो पर आजकल महफिल सजती है उसके

पता करो कौन से पंछी है जो घर पर मंडराया करते हैं ….

 

    © विशाल गायकवाड, वर्धा महाराष्ट्र    

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