लेखक की कलम से

डेढ़ सौ साल लगेंगे स्त्रियों को पुरुषों के बराबर होने में …

विश्व आर्थिक मंच के ताज़ा रिपोर्ट से हुआ खुलासा, समानता में भारत 140 वें पर

सारी दुनिया में स्त्रियों को समग्र रूप से पुरुषों के बराबर होने में सैकड़ों साल लगेंगे। लॉक डाउन के कारण स्त्री पुरुष की असमानता की खाई और चौड़ी हो गई है। अभी हाल ही में जारी विश्व आर्थिक मंच की लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट 2021 के मुताबिक दुनिया के 156 देशों में किए अध्ययन से यह सामने आया है कि महिलाओं कि स्थिति बहुत खराब है। वे पुरुषों से बहुत पीछे है। विश्व आर्थिक मंच की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी ने कहा है कि दुनिया भर के नीति निर्माताओं को इस चुनौती को गंभीरता से समझना होगा। उन्हें लैंगिक असमानता से निपटने के लिए सचेत और सार्थक कोशिश करनी होगी। क्योंकि जब तक स्त्री और पुरुषों के बीच समानता नहीं होगी तो समग्र विकास का सपना तो सपना ही रह जाएगा।

विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट अलग अलग क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों के बीच मौजूद असमानता की पड़ताल करती है। साथ ही यह बताती है कि आर्थिक सहभागिता,रोजगार के अवसर,शिक्षा की उपलब्धता,स्वास्थ्य स्थिति और राजनैतिक सशक्तीकरण जैसे क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर पहुंचने में कितना समय लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं और पुरुषों के बीच मौजूद राजनैतिक असमानता खत्म करने में 145 साल लगेंगे। वहीं आर्थिक मोर्चे पर महिलाओं को पुरुषों के बराबर होने में 267 साल लगेंगे।

अपने देश में महिला पुरुष असमानता की खाई काफी गहरी है। मंच के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल समानता को हासिल करने में 156 देशों की कतार में अपने देश का स्थान 140 वां है जबकि पिछले साल की सूची में 153 देशों की कतार में भारत का स्थान 112 पर था। यह उल्लेखनीय है कि भारत के मुकाबले हमारे पड़ोसी देशों में हालत काफी बेहतर है। इन देशों में श्रीलंका,बांग्लादेश,नेपाल और भूटान शामिल हैं।

अभी महिलाएं पुरुषों की बराबरी के लक्ष्य को पाने के प्रयासों को कामयाब करती जा रही थी लेकिन कोराना महामारी के कारण एक पीढ़ी पीछे चली गई।

संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार के स्रोतों के मुताबिक पिछले साल से अब तक कोराना संकट के कारण एक करोड़ शादीशुदा महिलाओं की नौकरी चली गई। इसी के साथ घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई। दुनिया भर में घरेलू हिंसा में पचास फीसद तो भारत में 30 फीसद बढ़ोतरी हुई। दुनिया भर में 13 करोड़ और भारत में 1 करोड़ लड़कियों की महामारी के कारण पढ़ाई छूट गई। स्कूल छूटने के कारण इनकी जल्दी शादी करने का संकट भी गहराने लगा है। ऐसे हालात में स्त्रियां कैसे समान होने के सपने को साकार कर पाएंगी।

लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए समाज की विचारधारा में बदलाव लाने की जरूरत है। साथ ही उन पूर्वग्रहों को भी त्याग करना होगा,जिनसे स्त्री और पुरुषों के बीच भेदभाव की धारणा स्थापित होती है। समानता के लिए महिलाओं को भी घर की चहारदीवारी से बाहर निकल कर सार्वजनिक क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। ज्ञान,सूचना,भाषा और चित्रों के जरिए भी स्त्री को अक्सर दोयम दर्जे का बताया जाता है। यूनेस्को के एक रिपोर्ट के मुताबिक स्कूली पाठ्यक्रमों में आधी आबादी को कम करके आंका जाता है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की छवि हलकी दिखाई जाती है। महिलाओं की भूमिका को भोजन,फैशन और मनोरंजन तक सीमित कर दिया जाता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। केवल सांकेतिक रूप से थोड़ी सी महिलाओं के आगे बढ़ने से समानता नहीं अा सकती है। भारत सरकार के मानव विकास मंत्रालय ने प्राथमिक शिक्षा के दिशा निर्देशों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की सिफारिश की है।

बीते कई दशकों में दुनिया भर की सरकारों ने लैंगिक समानता के लिए अनेक नीतियां बनाई है पर इनसे अपेक्षित नतीजे सामने नहीं आए हैं। जानकारों का कहना है कि यह एक सामाजिक समस्या है और लगता नहीं कि इसका समाधान केवल कानून बना देने से होगा। बुनियादी तौर पर हरेक मोर्चे पर बदलाव लाना पड़ेगा तभी स्त्री पुरुष समानता आ सकेगी।

अभी हाल में सेना में महिलाओं की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना में महिलाओं के स्थाई कमीशन के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया भेदभाव वाली है। कोर्ट ने कहा है कि हमारे भारतीय समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है। सिर्फ यह गर्व करना पर्याप्त नहीं है कि महिलाओं को सेना में नौकरी दी जा रही है। उन्हें पुरुषों की तरह समान महत्व देना जरूरी है। बराबरी का समाज स्थापित करने के लिए सोच और शब्द दोनों में बदलाव लाना जरूरी है। कोर्ट का कहना है कि समानता की सतही धारणा संविधान की मूल भावना के अनुरूप नहीं है। यह सिर्फ समानता को केवल सांकेतिक बनाना भर है।

 

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र                  

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