लेखक की कलम से
तुम आओ न …
नज़्म
देखा जब तुमने मुझे प्यार से झुका के नज़र
तेरे हुस्न ने भी किया मुझ पे जादू सा असर ।
बेपनाह मोहब्बत का वादा तुमने भी किया था
हमने भी मोहब्बत निभाने में ना छोड़ी थी कसर ।
शिद्दत थी तुम्हारे उन लफ़्ज़ों में जो कहे थे तुमने
मेरे प्यार में होकर दिवानी जूनूं की हद तक जाकर।
क्यों हो गए हो इतने बदगुमान यकीं ही नहीं रहा
मुझ पर , करते हो शक मेरी पाक मोहब्बत पर ।
ना तुझसे हुई कोई ख़ता ,ना मुझसे हुई कोई ख़ता
फिर क्यूं ख़फा हो गई मुझसे तुम्हारी ये नज़र ।
अहदे-वफ़ा निभाएंगे मर्ग़ तक , तुम आओ ना आओ
हमने ठानी है ज़िद्द इन्तज़ार करेंगे तुम्हारा उम्र भर ।
दर्दे-जुदाई प्रेम का अब तो बढ़ गया हद से
उठती है एक हूक मन में तुम्हारी यादों को लेकर ।
©प्रेम बजाज, यमुनानगर