मध्य प्रदेश

छठी बार स्वच्छता का सरताज बना इंदौर, घोषणा होते ही जश्न में झूम उठा हर इंदौरी, इंदौर एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों की रेस में रहा नंबर वन …

इंदौर. मध्य प्रदेश का इंदौर स्वच्छता के मामले में एक बार फिर से सिरमौर बना है. इंदौर देश के एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों की रेस में नंबर वन रहा. यह अवार्ड लेने इंदौर से 22 लोगों की टीम पहुंची थी, जिसमें सांसद शंकर लालवानी के साथ महापौर पुष्यमित्र भार्गव के अलावा नगर निगम आयुक्त प्रतिभा पाल मौजूद थी. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने यह सम्मान इंदौर को दिया. अवार्ड की घोषणा के बाद से शहर में जश्न का माहौल है. लोगों ने अपने घरों के आगे पटाखे जलाए तथा सड़कों पर ढोल-नगाड़ों के साथ जमकर नाच गाना किया. वहीं, एक-दूसरे को मिठाइयां खिलाकर बधाइयां दी जा रही है. जश्न के माहौल में सफाई मित्र और सफाई दीदियां भी पीछे नहीं हैं. सफाई दीदी अपने हाथों में झाड़ू लेकर सड़कों पर नाचती हुई दिखाई दी.

शहर के 14 स्थानों पर हुआ लाइव प्रसारण

शहर के 14 अलग-अलग स्थानों पर दिल्ली में हो रहे कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया गया. जैसे ही इंदौर को नंबर वन का खिताब मिला, सभी इंदौरी झूम उठे और एक-दूसरे को गले मिलकर बधाइयां देने लगे. ज्ञात हो कि इंदौर सफाई को त्यौहार की तरह मनाता है यही एक वजह है कि शहर लगातार छठवीं बार नंबर 1 का खिताब अपने नाम कर पाया है. शहर के साढ़े सात हजार सफाई मित्र दिन-रात अपनी मेहनत में लगे रहते हैं, उसी का नतीजा है कि इंदोर हर बार नंबर 1 ही रहता है. शहर के राजबाड़ा, पलासिया, मालवा मिल चौराहा, मेघदूत, खजराना मंदिर, रणजीत हनुमान, बड़ा गणपति, भंवरकुआं, रीगल, मरीमाता, रेडिसन चौराहा, परदेशीपुरा, 56 दुकान, निगम प्रांगण आदि स्थानों पर लाइव टेलीकास्ट की व्यवस्था की गई। इसके लिए एलईडी लगाई गई। गरबा पंडालों में शनिवार को सफाई मित्रों के सम्मान में स्वच्छता गान पर गरबा किया गया।

32 लाख इंदौरियों ने सफाई को अपने डीएनए में उतारा

अभी तक कई शहर ऐसे हैं, जहां गंदगी का आलम ही सुर्खियों में रहता है, वहीं, 32 लाख इंदौरियों ने सफाई को अपने डीएनए में उतारकर पिछले पांच सालों से अपना लोहा मनवाया है. अन्य सभी शहर कचरा निपटाने की व्यवस्था में सरकारी रकम ख़र्च करते हैं, लेकिन इंदौर इस मामले में भी आगे है. गीले कचरे से बायो सीएनजी फॉर्मूले की मदद से अपना खर्च तो कम करता ही है, बल्कि कचरे से अपनी कमाई भी करता है. यानी इंदौर में कचरे से कमाई होती है. इसके अलावा कुछ और फैक्टर भी हैं, जो स्वच्छता के मामले में इंदौर को अग्रणी बनाए रखते हैं.

कचरे की छंटाई में भी इंदौर अपग्रेड

नगर निगम इंदौर ने 2017 में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन वाहन से गीला और सूखा कचरा लेने की व्यवस्था बनाई थी. साल 2019 में इन वाहनों में तीसरा बिन लगाया गया. 2020 में इन वाहनों में ‘सिक्स बिन सेग्रिगेशन’ की व्यवस्था शुरू हुई. इसमें गीले और सूखे कचरे के अलावा प्लास्टिक, इलेक्ट्रिक, घरेलू हानिकारक व सेनेटरी वेस्ट को अलग-अलग लेने के लिए कपार्टमेंट बनाए गए. ऐसे में छह तरह का कचरा अलग-अलग मिलने से छंटाई की समस्या कम हुई.

वह पांच बातें, जिनकी वजह से मिली इंदौर को जीत

डोर टू डोर कलेक्शन

शहर में कचरा पेटियां नहीं हैं। 1500 वाहनों के नेटवर्क के कारण कचरा सीधे घरों से निकल कर कचरा ट्रांसफर स्टेशनों तक पहुंचता है। दूसरे शहर शत-प्रतिशत यह काम अभी तक नहीं कर पाए है। कई शहरों में कूड़े के ढेर दिखाई देते हैं।

वेस्ट सेग्रिगेशन

घरों से ही गाडि़यों तक पहुंचने वाला कचरा अलग-अलग हो जाता है। गीले, सूखे के अलावा प्लास्टिक, सेनेटरी वेस्ट, इलेक्ट्रिक और घरेलू हानिकारक कचरे को अलग-अलग बॉक्स में डाला जाता है। दूसरे शहरों में अभी भी मिक्स कचरा आ रहा है।

सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट

नदी व नालों के किनारे तीन साल में सात सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बने। सीवरेज के ट्रीट हुए पानी के उपयोग के लिए टंकियों का निर्माण करवाया। सवा सौ गार्डन्स में ट्रीटेड पानी पाइप से पहुंचाया जाता है।

कचरे से कमाई

नगर निगम को सूखे कचरे के पृथकीकरण प्लांट से प्रतिवर्ष 1.53 करोड़ रुपये, गीले कचरे से बायो सीएनजी के प्लांट से प्रतिवर्ष 2.53 करोड़ रुपये की कमाई हो रही है। बायो सीएनजी प्लांट से बाजार मूल्य से पांच रुपये कम कीमत पर मिलने वाली सीएनजी गैस से सालभर में डेढ़ से दो करोड़ रुपये की बचत हो रही है। गाद से भी खाद बनाने का काम हो रहा है।

थ्री आर मॉडल

निगम ने रिसायकल, रियूज व रिड्यूज मॉडल को शहर में लागू किया। एक हजार से ज्यादा बेकलेन में सीमेंटीकरण, सफाई कर उनमें पेटिंग बनाई। बेकार की चीजों से कलाकृतियां बनाई गई। शहर में थ्री आर मॉडल पर गार्डन बनाए गए। रहवासियों को गीले कचरे से खाद बनाने के लिए प्रेरित किया।

शहर में स्वच्छता को लेकर यह हुआ नवाचार

  1. –  10 से ज्यादा चौराहों पर फाउंटेन लगाए है, जो हवा में उड़ने वाले धूल कण को सोखते हैं। चौराहों के लेफ्ट-टर्न चौडीकरण, सेंट्रल डिवाइडर बनाए गए। इन पर पौधारोपण किया गया है।
  2. –  प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिए लोगों को जागरुक किया जा रहा है। कपड़े की थैलियों के उपयोग पर जोर दिया गया।
  3. –  पहले सूखे कचरे में 800 किलो प्रतिदिन सिंगल यूज प्लास्टिक आता था। अब सिर्फ 200 से 300 किलो ट्रेंचिंग ग्राउंड पहुंच रहा है।
  4. –  वायु प्रदूषण रोकने के लिए सिग्नल बंद होने पर वाहनों के इंजन बंद कराने का अभियान चलाया गया। मशीनों से सड़कों की सफाई और धुलाई होती है, ताकि धूल के कण सड़कों पर न रहे।
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