बहुचर्चित भैरवगढ़ जेल में 15 करोड़ के पीएफ घोटाले को लेकर एसआईटीई की जांच संदेह के घेरे में!
याचिककर्ता जनहित याचिका के लिए हाईकोर्ट जाने की तैयारी में

उज्जैन। मध्यप्रदेश के उज्जैन की भैरवगढ़ जेल में कर्मचारियों की भविष्य निधि के 15 करोड़ के बहुचर्चित घोटाले में जेल अधीक्षिका उषाराज और कुछ कर्मचारी जेल में हैं। घटनाक्रम को लेकर एसआईटी गठित की गयी, लेकिन मामले को लेकर एसआईटी की भूमिका ही संदेह के घेरे में है। मामला करोड़ों का है और इसमें आर्थिक हित साधने के षड्यंत्र को लेकर याचिकाकर्ता हाईकोर्ट की शरण में जाने को तैयार है। आखिर इस घोटाले के मास्टर माइंड को बचाने की कोशिश क्यों कामयाब होती दिख रही हैं।
गुरुवार को गबन कांड को लेकर एक बार फिर नया मोड़ आ गया है। पता चला है कि एक याचिकाकर्ता जेल गबन कांड को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाने जा रहे हैं, जिसकी तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही हैं। मालूम हो कि जेल गबन कांड पर गठित एसआईटी ने जांच में अपनी स्पीड धीमी करके कोर्ट में चालान पेश कर दिया। इससे यह जाहिर हो रहा है कि दाल में कुछ काला है। हाईकोर्ट में लगने वाली याचिका में याचिकाकर्ता ने जहां एसआईटी पर सवालिया निशान लगाएं हैं, वहीं पूर्व जेल सुप्रीटेंडेंट अलका सोनकर को आरोपी ना बनाया जाना भी पूरी जांच को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है। यही नहीं जब इस मामले में आरोपी बनाये गये जगदीश परमार ने अपनी गिरफ्तारी के पूर्व ली गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरके डेवलपर्स के राकेश अग्रवाल और कई सटोरियों के साथ एक सोने चांदी के व्यापारी के नाम भी चीख-चीखकर लिये थे, तो फिर एसआईटी उन्हें कैसे ग्रीन सिंग्रल दे सकती है।
एसआईटी, मीडिया के सवालों पर खामोश
मामले में खास बात यह है कि एसआईटी ने ट्रेजरी से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को पहले ही जांच के दायरे से बाहर कर दिया था। अभी तक पुलिस ने प्रेस को ना तो कोई ब्रीफ किया और ना ही अधिकारियों ने जानकारी मांगे जाने पर प्रेस को कोई संतोषजनक उत्तर दिया। मामले में एसआईटी पर मीडिया के सवालों का भी कोई उत्तर नहीं आया। ऐसे में याचिकाकर्ता अब हाईकोर्ट में एसआईटी प्रमुख, जिले के एसपी और जेल विभाग भोपाल मुख्यालय के अधिकारियों को विपक्षी प्रतिपक्षी बनाया जाएगा।
…तो सारे रहस्य खुल जाते
मामले में एसआईटी निष्पक्ष कार्रवाई करती तो तय था, कि इस मामले में ट्रेजरी अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ पूर्व जेल अधीक्षक अलका सोनकर की भूमिका भी सामने आती। क्योंकि पिछले पांच सालों से तो सिर्फ आरोपी उषा राज तो नहीं थी, इनके पहले अलका सोनकर के समय भी यह अपराध चला आ रहा था, तो फिर अलका सोनकर को क्यों छोड़ा गया।
15 करोड़ के गबन में एसआईटी ने महज चंद करोड़ राशि बरामद की
पता चला है कि मामले में एसआईटी ने पन्द्रह करोड़ के गबन कांड में महज चंद करोड़ की राशि उषा राजे के जेवरात समेत बरामद कर सकी है। हालांकि उषा राजे के जब्त जेवरात तो आय से अधिक संपत्ति का मामला के प्रकरण में शामिल होती है। इस हिसाब से एसआईटी तो महज चंद लाख रूपये ही आरोपियों से जब्त कर सकी। विचारणीय बात तो यह है कि जब पुलिस ही अपनी भूमिका सही तरीके से निर्वाह नहीं कर सकी तो उम्मीद किससे की जा सकती है।
लंबे लेनदेन की बातें भी बाजार में गर्म
बता दें कि इस मामले में एसआईटी पर आरोप लग रहे हैं कि बिल्डरों और व्यापारियों और बुकियों पर जेल गबन कांड का धन लगाया था तो उन्हें रिलिफ देने के लिए एक बड़ा सामंजस्य बैठाया गया। यही वजह रही कि ना तो इस मामले में बिल्डर राकेश अग्रवाल के खातों की जांच की गई, और ना ही बुकियों को तलाशा गया। मजेदार बात तो यह है कि इस मामले में एसआईटी ने पिछले एक महीने से चालान डायरी बनाने में ही अपना समय गंवा दिया, जबकि इस मामले में परत-दर-परत खुलती। लेकिन समय से पहले चालान पेश करना ही अपने आप में संदेह उत्पन्न कर रहा है।
जेल डीजी सेमा के बयान में भी विरोधाभास
इस मामले के बाद जेल गबन कांड की जांच करने पहुंचे जेल डीजी जी अखेतो सेमा ने पत्रकारों से बातचीत में यह बयान दिया था कि सरकार और जेल मुख्यालय जिन जेल कर्मियों के पीएफ से राशि का गबन हुआ है, उनकी पूरी राशि लौटाएगी, सबसे पहले जिन जेल कर्मचारियों का रिटायरमेंट होना है, उनकी राशि लौटाई जाएगी। चौकाने वाली बात तो यह है कि भेरवगढ़ जेल के ही तीन कर्मचारी पिछले एक माह में रिटायर हो चुके हैं, जो बिना पीएफ के रिटायर हो गये। ठगाए गए रिटायर अधिकारी अब किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर बैठे हैं।