छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ ने अपनी महिलाओं को कैसे विफल किया है?

✍अमित जोगी, पूर्व विधायक एवं प्रदेश अध्यक्ष JCC

A. यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता

इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में देवता से ज़्यादा देवी की पूजा होती है- दंतेश्वरी, बंबलेश्वरी, महामाया और चंद्रहासिनी हमारे चार धाम हैं। छत्तीसगढ़िया भारत का इकलौता समुदाय है जो अपने राज्य को महतारी {माँ} के रूप में पूजता है

मैं अपनी बात अमेरिका की वर्ण भेद और ग़ुलामी प्रथा के ख़िलाफ़ आजीवन संघर्ष करने वाली अश्वेत महिला Sojourner Truth (मूल नाम- इसबेला बौमफ़्री) से करूँगा -“मेरे पास किसी भी आदमी जितनी ही मांसपेशियों है, और जितना काम वो कर सकता है, उतना ही काम मैं कर सकती हूँ। मैंने रोपाई, बुआई, निंदाई, जोताई, लुआई और मिसाई की है। क्या कोई आदमी इससे अधिक काम कर सकता है?’ 350 साल बाद, यही प्रश्न छत्तीसगढ़ की महिलाएँ पूछ रही हैं।

B. मेरी किसान बहनों!

हर दृष्टि से छत्तीसगढ़ की महिला भारत की सबसे मेहनती हैं। उनकी श्रम शक्ति भागीदारी दर देश में सबसे अधिक है। छत्तीसगढ़ में महिला खेत-मजदूर प्रदेश की कुल कृषि श्रम शक्ति का 66% हिस्सा हैं जबकि पुरुष मात्र 34% हैं: फ़ूड एंड ऐग्रिकल्चरल ऑर्गनायज़ेशन (FAO) के अनुसार बैल की जोड़ी 1064 घंटे, एक पुरुष 1212 घंटे और एक महिला लगभग एक हेक्टेयर खेत पर एक वर्ष में 3485 घंटे काम करती है (शिवा एफएओ, 1991)। मतलब जब हम छत्तीसगढ़ के किसानों की बात करते हैं, तो हमारा तात्पर्य किसान भाइयों की अपेक्षा किसान बहनों से होना चाहिए।

C. दाई से बाई तक का दुखद सफ़र

छत्तीसगढ़ की कामकाजी महिलाओं की स्थिति को दो कारणों ने बुरी तरह प्रभावित किया है जिसके चलते मध्य भारत के चावल के कटोरा के किसान- जिसमें अधिकांश महिला-कृषक हैं- काम की तलाश में देश के सभी कोनों में पलायन कर रहे हैं।

1. जलवायु चक्र में परिवर्तन (बरसात में कमी, असामयिक वर्षा, सिंचाई के स्रोतों और तालाबों का सूखना, इंद्रावती, महानदी और रिहंद जैसी नदियों के पानी का क्षमता से बेहद कम उपयोग, महुआ और अन्य वनोपजों के फसल चक्रों में बदलाव)।

2. बड़े पैमाने पर विस्थापन (खनन के लिए ज़बरिया भूमि अधिग्रहण, निजी कंपनियों और सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा वन भूमि का अतिक्रमण, पेसा क़ानून का खुला उल्लंघन, वनाधिकार अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्र में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वन-अधिकारों के दावों को सिरे से ख़ारिज करना, मानव तस्करी, टोनही प्रथा और नक्सलवाद)।

इस व्यापक विस्थापन और पलायन के परिणामस्वरूप महिलाओं की भूमिका कृषक से दिहाड़ी मजदूर (रेजा) और बड़े-बड़े शहरों में बड़े-बड़े लोगों के घरों में घरेलू नौकर (बाई, आया, नौकरानी) की हो गई है।

D. बेटी पढ़ाबो तभे बेटी बचाबो!

प्रदेश में अभी भी महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति चिंतनीय है। आदिवासी महिलाओं की साक्षरता दर राज्य में साक्षरता दर की तुलना में 59 प्रतिशत कम है। उच्च शिक्षा में लैंगिक भेदभाव बना हुआ है और पढ़ाई छोड़ने वाली महिलाओं की संख्या छत्तीसगढ़ में देश में सबसे अधिक है: जहाँ 70% से अधिक महिलाएँ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करती हैं, वहीं मात्र 16% महिलाएँ माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाती हैं। पढ़ने-लिखने की उम्र में उन्हें कामकाज में लगा दिया जाता है या फिर शादी करा दी जाती है।

E. आर्थिक-ग़ुलामी

ये बात किसी से छुपी नहीं है कि छत्तीसगढ़ देश में सबसे अधिक 47.9 प्रतिशत लोग गरीबी दर के नीचे अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इसका महिलाओं पर ख़ासा प्रभाव पड़ता है।

  • 1. पहला, ग़रीबी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक कमजोर बनाती है क्योंकि आर्थिक संसाधनों पर महिलाओं का नियंत्रण पुरुषों की तुलना में काफी कम है।
  • 2. दूसरा, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में समान काम के लिए कम वेतन मिलता है।
  • 3. तीसरा, उनका परिवार के संसाधनों पर बहुत कम या कोई नियंत्रण नहीं होता है और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम संपत्ति प्राप्त होती है।
  • 4. चौथा, महिलाओं को कम भोजन दिया जाता है जिसके कारण वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक कुपोषित हैं। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में MMR (मातृ मृत्यु दर) 221 प्रति हज़ार है जो कि 167 के राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
  • 5. पाँचवा, महिलाएँ अधिक तनाव में रहती हैं क्योंकि वे बच्चों और बूढ़ों की देखभाल के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। दुर्भाग्य की बात है कि अब तक, राज्य में महिलाओं की आय का आंकलन नहीं किया गया है जबकि परिवार की देखभाल, बच्चों का पालन-पोषण और गृहकार्य ऐसे आर्थिक अवैतनिक कार्य हैं जिनका उन्हें कोई वेतन भी नहीं मिलता है।
  • 6. छँटा, छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में बाल लिंगानुपात लगातार नीचे जा रहा है- 1991 में 996 और 2011 में 969। मतलब आज भी छत्तीसगढ़ में बेटी की अपेक्षा लोग बेटे को प्राथमिकता देते हैं।
  • 7. सातवाँ, महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक कमजोरी के कारण उन्हें घरेलू और सामाजिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है।

वास्तविक सशक्तीकरण तो तभी होगा जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी। और उनमें कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा। इस में सबसे बड़ी बाधा शराब है।

F. शराब है ख़राब

छत्तीसगढ़ में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा (VAWG) हमारे प्रदेश की सबसे बड़ी नाकामियों में से एक है। भारत के अन्य राज्यों के विपरीत, छत्तीसगढ़ में 2005-06 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (NFHS-3) और 2015-16 में NFHS-4 के बीच घरेलू हिंसा में 6.8% वृद्धि देखी गई है जबकि अन्य राज्यों ने घरेलू हिंसा को कम करने में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, हमारे पड़ोसी राज्य बिहार, जो देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक था, में इसी अवधि के दौरान घरेलू हिंसा में 15.8% की कमी देखी गई है। बहुत हद तक इसका कारण बिहार में पूर्ण शराब बंदी है।

साथ ही, छत्तीसगढ़ में 2005-06 (NFHS-3) और 2015-16 (NFHS-4) के बीच छिटपुट हिंसा की शिकार महिलाओं का प्रतिशत 29.9% से बढ़कर 36.7% हो गया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -3 (NFHS-3) के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में छत्तीसगढ़ में दलितों और आदिवासियों में घरेलू हिंसा की घटनाएं सबसे ज्यादा हैं। 43.7% आदिवासी महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं हालाँकि इसे आदिवासी समुदाय के सामने आने वाली कुछ चुनौतियों जैसे भू-विस्थापन, नक्सलवाद, शिक्षा-स्वास्थ्य-न्याय सुविधाओं तक सीमित पहुंच, आर्थिक अवसरों की कमी के चश्मे से देखा जाना चाहिए। रायपुर महिलाओं के खिलाफ अपराधों में देश भर में चौथे स्थान पर है।

घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण शराब है। NFHS-3 के अनुसार छत्तीसगढ़ में 52% पुरुष शराब का सेवन करते हैं। छत्तीसगढ़ में पुरुषों के बीच शराब की खपत देश में सबसे अधिक है। NFHS का दावा है कि जिन महिलाओं के पति शराब का सेवन करते हैं और नशे में रहते हैं, उन महिलाओं की तुलना में घरेलू हिंसा का अनुभव अधिक होता है जिनके पति नहीं पीते हैं। हालांकि NFHS-3 के अनुसार छत्तीसगढ़ में 19% महिलाओं ने शराब का सेवन नहीं करने वाले पतियों द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है। NFHS और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की यह जानकारी छत्तीसगढ़ की पूरी आबादी को प्रतिबिंबित करती है।

G. काग़ज़ के क़ानून

मुझे लगता है महिला दिवस का औचित्य तब तक सिद्ध नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। महिलाओं के उत्थान और सुरक्षा के लिए नीतियाँ बनी है लेकिन क्या छत्तीसगढ़ में उनका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है?

काग़ज़ों में छत्तीसगढ़ में महिलाओं के संरक्षण के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम (PWDVA) लागू है। किंतु आज तक छत्तीसगढ़ सरकार ने PWDVA के कार्यान्वयन के लिए एक अलग बजट आवंटित नहीं किया है। यह राज्य सरकार की ग़लत नियत को दर्शाने के साथ-साथ घरेलू हिंसा अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए भर्ती किए गए कर्मचारियों को उनके वैधानिक जवाबदेही के मुक्त भी कर देता है।

PWDVA का सबसे सशक्त प्रावधान OSCs (one-stop centres) की स्थापना है जहाँ पीड़िता को एक स्थान पर सम्पूर्ण न्याय मिलना चाहिए। लेकिन छत्तीसगढ़ में OSCs केवल काग़ज़ों में बने हैं और ज़मीन पर कुछ नहीं दिखता। इनके अभाव में पीड़ित महिलाओं को दर दर की ठोकरें खानी पड़ती है। इसी तरह, पूरे राज्य में केवल तीन आश्रय गृह (shelter homes) हैं, जबकि हिंसा से प्रभावित महिलाओं और लड़कियों की संख्या लाखों में है। राज्य सरकार को हिंसा से प्रभावित महिलाओं और लड़कियों के लिए इन सुविधाओं को प्रभावी बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और सेवा के प्रावधान में सुधार करने की आवश्यकता है।

H. स्वतंत्रता का संकल्प

यह महत्वपूर्ण है कि महिला दिवस का आयोजन सिर्फ रस्म अदायगी भर नहीं रह जाए। वैसे यह शुभ संकेत है कि महिलाओं में अधिकारों के प्रति समझ विकसित हुई है। अपनी शक्ति को स्वयं समझकर जागृति आने से ही महिला घरेलू अत्याचारों से निजात और कामकाजी महिलाएं अपने उत्पीड़न से छुटकारा पा सकती हैं। तभी महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।

हॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री ऐंजिला जोली ने कहा है कि “एक मजबूत, स्वतंत्र और शिक्षित महिला की तुलना में सामाजिक स्थिरता का कोई बड़ा स्तंभ नहीं है। ऐसे पुरुष से ज्यादा प्रेरक रोल मॉडल कोई नहीं है जो महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनके नेतृत्व को प्रोत्साहित करता हैं।“ इसी भावना का अनुसरण करते हुए आप मेरे साथ अपने दिल पर हाथ रख कर छत्तीसगढ़ महतारी को साक्षी मानके संकल्प लीजिए।

“8 मार्च का समय है-

  • लिंग के भेद भाव को चुनौती देने का ,
  • एक दूसरे को सशक्त बनाना का ,
  • विविधता का जश्न मनाने का ,
  • रूढ़ियों को तोड़ने का,
  • पुरुषों की बनाई सही और ग़लत की परिभाषाओं को अस्वीकार करने का,
  • एकजुट होने का,
  • ठोस कार्यवाही करने का,
  • छत्तीसगढ़ को शराब मुक्त बनाने का।

अपने आप से कहें कि …

  1. मैं कर सकती हूं,
  2. मैं करूंगी,
  3. मैं कुछ बन कर ही रहूंगी,
  4. मैं प्रण लेती हूं…”

दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिला ओप्रा विन्फ़्री ने कहा है कि सच बोलना ही हमारे पास सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। आने वाले दिनों में हम सत्ता में बैठे लोगों का सोया हुआ ज़मीर जगाने में इस शस्त्र का भरपूर उपयोग करेंगे।

जय छत्तीसगढ़

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