लेखक की कलम से

बुराइयां …

“मेरे बेटे ने तो मेरे सारे अरमानों पर पानी फेर दिया, सोच रही थी अपनी पसंद की बहू लाऊंगी और खूब दहेज मिलेगा, इतनी अच्छी पोस्ट पर है मेरा बेटा, लेकिन सस्ते में ही निपट गया, लव मैरिज जो कर ली।”मुंह बनाते हुए रमा अपनी सहेलियों से बोली, जो आज रमा से मिलने आईं थीं।

“अरे यार, ऐसे ही है, एक हमारी बहू हैं; हुई तो अरेंज मैरिज थी, लेकिन बहू किसी काम की नहीं है; काम सही करने की जगह बिगाड़ती ज्यादा है।”किरण मुंह बनाते हुए बोली।

“मेरी बहू ने तो मेरे बेटे को मुट्ठी में कर रखा है, एक समय ऐसा था, जब मेरी बात को मेरा बेटा टाल नहीं सकता था और आज मेरी बात का वो ध्यान नहीं देता है, ऐसी बहू आई है कलमुंही; जिसने आकर मेरा बेटा छीन लिया।”एक सहेली सरला ने कुछ गुस्से में कहा।

“मेरी ही बहू को लेे लो, अभी पांच महीने हुए हैं शादी को लेकिन हर सन्डे मेरे बेटे के साथ घूमने जाती है और मेरा बेटा भी उसके लिए पागल हो गया है, की हर सन्डे ले जाता है।”मुंह बनाकर एक सहेली रीमा बोली।

एक सहेली कविता चुपचाप मुस्कुरा कर उन सबकी बातें सुन रही थी, पर कुछ बोल नहीं रही थी, तभी रमा ने मुस्कुराते हुए पूछा”अरे कविता, तू कैसे चुपचाप बैठी है; तू भी तो कुछ बोल, माना की तेरे बहू बेटे दूसरे शहर में रहते हैं; पर तेरे पास कोई ना कोई बात तो होगी।”

“नहीं, मैं सोच रही थी, की क्या तुम्हारी बेटियों के बारे में भी उनकी सासें ऐसे ही कहती होंगी, जैसा तुम लोग अपनी अपनी बहुओं के लिए कह रहे हो या तुम सबकी सासें भी ऐसे ही तुम लोगों के बारे में सोचती होंगी, बस यही सब सोच रही थी, मैं तुम सबका नेचर भी जानती हूं, की कितना मीनमेख निकालने वाला है और तुम्हारी बहुओं को भी जानती हूं की कितनी अच्छी हैं, फिर भी तुम बुराई कर रही हो; बस रमा की बहू को मैं नहीं जानती, लेकिन रमा को बहू से इसलिए परेशानी है, की वो मोटा दहेज नहीं लाई।”कविता ने मुस्कुराते हुए कहा।

कविता की बातें सुनकर किसी के मुंह से एक शब्द नहीं निकल पाया, सबकी बोलती बंद हो चुकी थी।

 

©श्वेता शर्मा, आगरा, उत्तर प्रदेश

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