लेखक की कलम से
चर्चा…
रोज शाम को एक जंग होती हैं
मेरे घर में भी
चाय और कॉफी के लिए
बँट जाते हैं हम, दो गुटों में !!
चाय वालों को रूढ़िवादी कहा जाता है
कॉफी वालों को अत्याधुनिक
बहस का विषय हो जाती हैं
‘दोनों तरह के समाजों से उत्पन्न
परिस्तिथियाँ’
हम चर्चा करते हैं, आधुनिक समाजों की
जहाँ तथाकथित सम्बन्ध
आम बात हैं
हम चर्चा करते हैं रूढ़िवादी समाज की
जहाँ स्त्री-पुरुषों में भेदभाव हैं
हमारी चर्चा देश के हालातों पे होती हैं
क्योंकि यहाँ दोनों समाज हैं
चाय और कॉफ़ी
ठंडी हो जाती हैं
हमारी तर्क-वितर्क में उलझी हुई चर्चायें
बारहा ख़त्म होती हैं
जब हम देख लेते हैं
पकौड़े भी ठंडे हो गये !!
हम भूल जाते हैं तब
सारे गिले-शिकवे,
आधुनिकता और रूढ़िवादिता की जंग,
और कर लेते हैं समझौता
हर बार की तरह
जैसे देश के हालातों पर
सिर्फ़ बोल सकते हों, कर कुछ ना सकते !!
©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश