छत्तीसगढ़

GPM में शिक्षा का बुरा हाल: छात्र नहीं पढ़ पाए हिंदी की किताब…

गौरेला पेंड्रा मरवाही.

गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में जिला मुख्यालय से दूर संचालित होने वाले आदिवासी इलाकों में शिक्षा स्तर बद से बदतर हो रहा है। शिक्षा के नाम पर छात्रों के साथ मजाक हो रहा है। कक्षा पांचवीं में पढ़ने वाले छात्रों को नहीं पढ़ना नहीं आता। जिम्मेदार शिक्षक स्कूल पहुंचकर उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर कर खानापूर्ति करते हैं। जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने भी आदिवासी इलाकों से मुंह मोड़ लिया है। जिला शिक्षा अधिकारी ने व्यवस्था सुधारने की बात कही।

अविभाजित मध्यप्रदेश में भी अपना विशेष स्थान रखने वाला पेंड्रा इलाका छत्तीसगढ़ राज्य और जिला बनने के बाद अव्यवस्था का शिकार होता नजर आ रहा है। प्रशासनिक उदासीनता का सबसे अधिक शिकार शिक्षा विभाग ही हुआ है। दरअसल, जिला मुख्यालय से दूरस्थ इलाकों में स्थित आदिवासी गांवों में शिक्षा अपने निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है। सरकार ने शिक्षा दिलाने के लिए दूरस्थ इलाकों में भी प्राइमरी स्कूल मिडिल स्कूल अतिरिक्त भवन बाउंड्री वॉल के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति तो कर दी है। लेकिन जिम्मेदार शिक्षक स्कूलों में यदि अपने कर्तव्यों का पालन ही न करें तो व्यवस्था कैसे चले..?? कुछ ऐसा ही हो रहा है इस जिले में पेंड्रा और गौरेला विकासखंड के दूरस्थ ग्रामों बस्ती बगरा इलाके में। जब हमारी टीम पहुंची तो जो नजारा देखने को मिला। सरकारों के लिए चिंतनीय विषय है। यहां पढ़ने वाले पहले से पांचवीं तक के छात्रों को हिंदी पढ़नी नहीं आती।

आलम यह है कि कक्षा पांचवीं में पढ़ने वाला छात्र कक्षा दूसरी और तीसरी की हिंदी की पुस्तक भी नहीं पढ़ पा रहा है। हमने जब रामगढ़, बस्ती, बगरा, कोटमीखुर्द और उसके पास के कुछ स्कूलों का हाल-चाल जानने इन स्कूलों का रुख किया तो इन स्कूलों ने पूरे प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। वैसे तो शासन स्तर ज्यादातर स्कूलों में तीन से पांच अध्यापकों की नियुक्ति की गई है। लेकिन किसी भी स्कूल में एक से अधिक शिक्षक नहीं मिले। ज्यादातर शिक्षक स्कूल पहुंचने के बाद उपस्थिति पंजी में अपने हस्ताक्षर करने के उपरांत या तो घर चले गए थे या किसी आवश्यक कार्य का बहाना करते हुए एक आवेदन रजिस्टर में छुपा कर स्कूल से नदारत थे। जबकि उपस्थिति पंजी में सभी के हस्ताक्षर पाए गए। मतलब दिनभर की तनख्वाह सभी को मिलेगी।
जब प्राथमिक और माध्यमिक शाला का यह हाल है तो हमने हाई स्कूल का रुख किया। स्कूल में कक्षा नवमी और दसवीं को पढ़ने के लिए शासन ने काफी बड़ी बिल्डिंग बना रखी हैं। जिसकी लागत लाखों में होगी और इस स्कूल में पांच शिक्षकों की नियुक्ति भी है। लेकिन स्कूल में सिर्फ दो ही शिक्षक उपस्थित मिले। नौंवीं और दसवीं के विद्यार्थियों को सुबह 10 बजे स्कूल आने के बाद छह घंटे में सिर्फ एक ही विषय पढ़ाया गया।

शिक्षक स्कूल आने के बाद अपना जरूरी काम बताते हुए स्कूल से चले गए और एक आवेदन स्कूल के उपस्थिति पंजी में छोड़ दिया। लेकिन इन सभी शिक्षकों ने उपस्थिति पंजी में दिनभर के हस्ताक्षर कर रखे थे। स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी शिक्षकों के इन हरकतों से अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के इन दूरस्थ इलाकों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को जब मातृभाषा हिंदी भी पढ़नी नहीं आ रही तो सावल होना लाजिमी था। हमने स्कूल में मौजूद शिक्षकों से जब जानकारी लेनी चाहिए तो बच्चों के हिंदी पढ़ना पाने का कारण उनका शर्मीला स्वभाव और  ग्रामीणों के घरों में टीवी मोबाइल न होने का कारण बता दिया। टीवी मोबाइल न होने से बच्चे हिंदी नहीं पढ़ पा रहे। इसका क्या कनेक्शन होगा। हम भी सोच में पड़ गए। छत्तीसगढ़ को आईएस, आईपीएस, गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर, प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री देने वाला गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में आजादी के पूर्व से ही शिक्षा का उच्च स्तर रहा है। लेकिन इतने संसाधन देने के बाद यदि शिक्षा का स्तर इतना नीचे गिर रहा है तो निश्चय ही यह शासन और प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है। साथ ही उन सभी सरकारी योजना और अधिकारियों कर्मचारियों पर सवालिया निशान लगता है जो आदिवासियों का जीवन स्तर और शिक्षा को ऊंचा उठने के लिए इस जिले में काम कर रहे हैं।

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