लखनऊ/उत्तरप्रदेश

अखिलेश यादव सीट शेयरिंग को लेकर सक्रिय हैं और उन्होंने आगे बढ़कर कांग्रेस को 11 सीटें देने का किया ऐलान

नई दिल्ली
विपक्ष के INDIA अलायंस में सीटों का बंटवारा एक चुनौती बन गया है। पटना से बेंगलुरु और मुंबई तक एकता के नारों के बीच बने इस गठबंधन की गांठें बिहार में खुल गई हैं तो बंगाल में ममता अकेले ही निकल पड़ी हैं। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने सीटों पर समझौते से इनकार किया है। लेकिन अखिलेश यादव सीट शेयरिंग को लेकर सक्रिय हैं और उन्होंने आगे बढ़कर कांग्रेस को 11 सीटें देने का ऐलान कर दिया है। इसके अलावा पश्चिम यूपी की पार्टी रालोद को भी 7 सीटों का ऑफर दिया है। इस तरह राज्य की 80 में से 18 सीटें दो दलों को अखिलेश यादव दे चुके हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की मांग 20 सीटों की थी। फिर भी सपा ने 11 ही दी हैं।

यही नहीं बसपा के साथ जाने को सपा ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रही है। यूपी की राजनीति को समझने वाले मानते हैं कि अखिलेश यादव इस बार 2017 और 2019 की गलतियों से सीख कर आगे बढ़े हैं। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटें दे दी थीं। यह गलती उन्हें बहुत भारी पड़ी थी क्योंकि कांग्रेस सिर्फ 7 पर जीत हासिल कर पाई थी। वजह यह कि भाजपा से सीधे मुकाबले की स्थिति में कांग्रेस कमजोर निकली। इस बार अखिलेश यादव उस गलती को नहीं दोहराना चाहते। इसके अलावा बसपा को साथ ना लेने की रणनीति 2019 का सबक है।

तब सपा ने बसपा को 38 सीटें दे दी थीं और उसने 10 सीटें जीत ली थीं। वहीं सपा ने 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उसके 5 ही जीते थे। ऐसी स्थिति से बचने के लिए अखिलेश यादव बसपा संग गठबंधन को तैयार नहीं है। सपा ने 2019 में बसपा को सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अलीगढ़, धौरहरा, सीतापुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, कैसरगंज, बस्ती और सलेमपुर, जौनपुर और भदोही जैसी सीटें दे दी थीं। इनमें से कई सीटों पर सपा ही मजबूत रही है। ऐसे में बसपा को ज्यादा और मजबूत सीटें देने पर सवाल उठे थे।

यही नहीं 2019 के गठबंधन में बसपा को तो सपा का वोट ट्रांसफर हो गया था, लेकिन सपा को हाथी के नाम पर पड़ने वाले मत नहीं मिले। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि वोट ट्रांसफर न होने का आरोप लगाकर मायावती ने ही गठबंधन तोड़ दिया था। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने उसी से सीख लेते हुए अकेले ही बड़ा शेयर लेने का फैसला लिया है।

 

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