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2004 हार के लिए आडवाणी ने RSS को ठहराया था जिम्मेदार, किताब में दावा …

नई दिल्ली। लालकृष्ण आडवाणी, जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का सुझाव दिया और बाद में 2002 में गुजरात दंगों के बाद इस्तीफे की मांगों को खारिज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के लिए RSS (विश्व हिन्दू परिषद) को जिम्मेदार ठहराया था। एक किताब में इस बात का दावा किया गया है।

अपनी पुस्तक जुगलबंदी में, जो कि इंटरव्यू, निजी दस्तावेज और बीजेपी के इतिहास लेखन पर आधारित है, में लेखक विनय सीतापति का कहना है कि पार्टी की हार आंशिक रूप से “बहुत अधिक विचारधारा” पर केंद्रित थी। किताब के अनुसार, उस चुनाव में केंद्र में सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही भाजपा बहुमत से 100 सीट पीछे रह गई थी। RSS (विश्व हिन्दू परिषद) ने अपने स्वयं के निदान की पेशकश की: RSS (विश्व हिन्दू परिषद) कोर मतदाता और कैडर ने एक उदासीनता दिखाई थी, क्योंकि विचारधारा में कमजोर पड़ने के बारे में धारणा बन गई थी।’

दूसरी तरफ आडवाणी जी और अटल बहुत अधिक विचारधारा को दोष देते हैं। हालांकि, यह आडवाणी ही थे जिन्होंने अटल को परास्त कर नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन की रक्षा की थी, लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने क्या किया है। आडवाणी ने अपने पारिवारिक मित्र (अटल) को जल्द ही छोड़ दिया। उन्होंने कहा था RSS (विश्व हिन्दू परिषद) ने हमें नुकसान पहुंचाया।”

किताब के मुताबिक, चुनाव में मिली हार के लिए दोष दंगों पर लगाया गया था, जिसके लिए नरेंद्र मोदी को अल्पसंख्यक (मुसलमान) समुदाय की रक्षा नहीं करने के लिए दोषी ठहराया गया था। “अटल ने 2002 के गुजरात दंगों के लिए दोषी ठहराया। उन्होंने कहा था कि यह वह गलती है जो हमने की थी।’ इसके तुरंत बाद भाजपा की एक बैठक में, उन्होंने नरेंद्र मोदी को फिर से बर्खास्त करने की पैरवी की। साथ ही कहा गया कि यह गठबंधन के सहयोगियों के लिए महंगा साबित हुआ।”

किताब में आडवाणी जी और मोदी के संबंधों के बारे में भी बताया गया है। हालांकि, इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर जानकारी दी गई है। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि साल 2014 के आम चुनावों के पहले कैसे आडवाणी और मोदी के रिश्ते बदल गए।

किताब में लिखा गया है, ”आम चुनावों के कैंपेन के लिए मोदी को चुने जाने के अगले दिन, उस शख्स ने जिसने अपनी पूरी जिदंगी जनसंघ और फिर भाजपा को मजबूत बनाने में बिता दी, पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। आडवाणी जी ने इस्तीफे के लिए जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले से पार्टी का मौजूदा कामकाज जिस दिशा में जा रहा है, उससे सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो रहा है। मैं अब यह महसूस नहीं कर पा रहा हूं कि यह वही आदर्शवादी पार्टी है, जिन्हें डॉ मुखर्जी, दीनदयाल, नानाजी और अटल ने बनाया था। इन सभी की एकमांत्र चिंता देश की जनता और उनके लिए काम करने की थी। वर्तमान समय में अधिकांश हमारे नेता अपने व्यक्तिगत एजेंडे को लेकर चिंतित हैं।”

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