लेखक की कलम से
प्रतिक्रिया ….
कभी-कभी समय पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
एहमियत के लिए नहीं,
जिन्दा होने का एहसास दिलाने के लिए।
हममें भी आवेग है, जो बहकर दूसरों तक भी जाता है।
हममें भी कुछ है, जो कह कर जाता है।
हम “हम” हैं, ये एहसास दिलाता है।
कुछ अवधारण लिए हैं, ये उनको भी जताता है।
जब चाहो उठाकर, बैठाओ और फिर गिराओ,
हम जड़ नहीं, ये उनको भी तो समझाता है।
इसलिए बात-बेबात पर नहीं,
सही जगह पर प्रतिक्रिया देनी हैं।
कभी-कभी ही सही, जरूरी होता है,
एहसासों से घिरे हमभी हैं, जताना पड़ता है।
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता